जिले की 71 ग्राम पंचायतों में थमे मनरेगा के कार्य
जागरण संवाददाता बांदा जिले में 71 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के कार्य पूरी तरह बंद हैं। यह
जागरण संवाददाता, बांदा : जिले में 71 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के कार्य पूरी तरह बंद हैं। यहां के करीब 27 हजार मजदूर बेरोजगार होकर शहरों में काम तलाश रहे हैं। श्रमिकों के सामने बड़ी चुनौती है। एक तरफ आसमान छू रही महंगाई तो दूसरी तरफ बेरोजगारी का दंश है। तमाम श्रमिक परिवारों के घर चूल्हे जलाने के लाले पड़े हैं। मनरेगा उनकी भूख नहीं मिटा पा रही है।
मनरेगा उपायुक्त योगेश कुमार ने पिछले माह वीडियो कान्फ्रेसिग में सभी जिलाधिकारियों को मनरेगा से प्रत्येक ग्राम पंचायत में कम से कम 100-100 श्रमिकों को रोजगार दिए जाने के निर्देश दिए थे, लेकिन जिले में इस आदेश का अनुपालन नहीं हो पा रहा है। बीडीओ और संबंधित अधिकारी मंशा पर पानी फेर रहे हैं। सोमवार को आई रिपोर्ट में जनपद की 471 ग्राम पंचायतों में से 71 में मनरेगा के फावड़े थमे हैं। यहां करीब 27 हजार मनरेगा श्रमिक बेरोजगार काम की तलाश में घूम रहा है। आठ ब्लाकों की 471 ग्राम पंचायतों में शासन के आदेश के लिहाज से 47100 श्रमिकों को मनरेगा से कार्य हर रोज मिलना चाहिए। इसके सापेक्ष महज 19229 मजदूरों को ही रोजगार मिला है। ब्लाकवार स्थिति देखें तो नरैनी ब्लाक इसमें फिसड्डी है। यहां 83 में 19 ग्राम पंचायतों में कार्य बंद हैं। बबेरू में 61 में से 15, बड़ोखर में 59 में से 5, बिसंडा में 49 में से 3, जसपुरा में 32 में से 10, कमासिन में 55 में 8, महुआ में 76 में से 3 व तिदवारी ब्लाक की 56 ग्राम पंचायतों में से 8 में मनरेगा के फावड़े खामोश हैं। ऐसे में पलायन से बचे मजदूरों के घर खाने-पीने के लाले हैं।
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बेरोजगारी की स्थिति :
सभी ब्लाकों में 27871 मनरेगा श्रमिक बेरोजगार हैं। बबेरू में 4101, बड़ोखर खुर्द में 2871, बिसंडा में 2655, जसपुरा में 2412, कमासिन में 2401, महुआ में 3906, नरैनी में 5463 व तिदवारी ब्लाक में 4062 मजदूर बेरोजगार बैठे हैं और शहरों में काम की तलाश में भटक रहे हैं।
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क्या कहते हैं मजदूर :
-गांव में माह भर से मनरेगा में कोई कार्य नहीं मिल रहा है। गनीमत है कि शहर में त्योहार की वजह से पुताई आदि का कार्य मिल रहा है। इससे चूल्हे जल रहे हैं।
-विशुनदेव, मरौली
-मनरेगा में कार्य व भुगतान दोनों में लापरवाही है। परेशान होकर वह हर रोज शहर आते हैं। सप्ताह भर में दो-तीन भी काम यहां मिल गया तो परिवार का गुजारा चल जाता है।
-राममनोहर, निवादा
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क्या कहते हैं अधिकारी
-मनरेगा में मजदूरी कम है और शहर में ज्यादा मिलती है। इसलिए श्रमिक शहर की ओर भागते हैं। मनरेगा के कार्य जहां बंद है, वहां के सचिवों व बीडीओ से जवाब मांगा गया है।
-हरिश्चंद्र वर्मा, सीडीओ, बांदा