काका पहिचानेव कि नहीं, हम सुषमा स्वराज हन
कुल्हड़ में चाय पीने की दी थी नसीहत रामलीला मैदान ऊबा में जब सभा के संबोधन दौरान उन्हें कांच के गिलास में चाय दे दी गई तो वह काफी नाराज हो गईं । ग्रामीणों से बोलीं कि आप सभी कांच के गिलास को त्यागें । उन्होंनेपूरे बुंदेलखंड से कुल्हड़ में चाय पीने काआह्वान किया था बोला कि कुल्हड़ की चाय पीने से शरीर स्वस्थ रहता है
विमल पांडेय, बांदा : तारीख थी 29 नवंबर 1978। एक युवा महिला घर-घर वोट मांगने पहुंच रही थी। हर किसी की नजर उस पर थी। गजब का आत्मविश्वास, वाक्पटुता और एक पल में हर किसी को अपना बना लेने की क्षमता। महज चार घंटे में ही मानों बुंदेलखंड उनके लिए हो और वह बुंदेलखंड की। यह महिला थी भाजपा की दिवंगत नेता पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज।
पूर्व विदेश मंत्री 29 नवंबर 1978 को बांदा जिले के पैलानी स्थित गांधी चबूतरा पर आयोजित जनसभा में शिरकत करने आई थीं। यहां लोकसभा का उपचुनाव था और जनता पार्टी की ओर से लियाकत अली मैदान में थे। जनसभा को संबोधित करने के बाद वह खप्टिहाकला गांव पहुंचीं। गांव की महिलाओं, पुरुषों के बीच ऐसे रम गई थीं कि मानो वह स्थानीय निवासी हों। खप्टिहाकला के दिनेश तिवारी बीते दिनों की यादें ताजा करते हुए बताते हैं कि उस समय सुषमा जी हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री थीं। उन्होंने महिलाओं से उन्हीं के अंदाज में बात की थी। समस्याएं सुनकर बोलीं, 'परेशान न होयेव लियाकत अली का जितावा, विकास पूरा करावा जाई। घर के दरवाजे चारपाई पर बैठे रामधनी को देखकर बोलीं, अउर काका, पहिचानेव कि नहीं हम सुषमा स्वराज हन। इतना सुनते ही रामधनी उनके काफिले में चल पड़े। अतीत की ये यादें अभी भी गांव के बुर्जुगों के रोम-रोम में बसी हैं। हालांकि इसके बाद सुषमा स्वराज कई बार बांदा आई, लेकिन उनका पहला दौरा अभी भी लोग नहीं भूलते।
कुल्हड़ में चाय पीने की दी थी नसीहत
इसी दिन रामलीला मैदान ऊबा में जनसभा के दौरान कांच के गिलास में चाय देख वह काफी नाराज हो गई थीं। ग्रामीणों से बोलीं कि आप सभी कांच के गिलास को त्याग दें। कुल्हड़ में चाय पिया करें। कुल्हड़ में चाय पीने से शरीर स्वस्थ रहता है।
सुषमा के ढोलक बजाते ही नाच उठा था गांव
चुनावी व्यस्तता के बीच सुषमा स्वराज पैलानी में वैद्य रमाकांत दीक्षित की बेटी अरुणा दीक्षित की शादी में भी शामिल हुई थीं। उन्होंने महिलाओं के साथ बैठकर बन्नी गीत गाया, फिर ढोलक बजाकर सबको चौंका दिया। वैद्य रमाकांत दीक्षित अब नहीं हैं। उनके बेटे रमेश और भाई मनोज बीते दिनों की यादें ताजा करते हुए बोले, सुषमा जी द्वारा बजाई गई ढोलक आज भी सहेज कर रखी है।