गुरुकुल के मंत्रों से और प्रखर हो रही भारतीय संस्कृति
जागरण संवाददाता बांदा चित्रकूट में झांसी-मीरजापुर हाईवे पर स्थित बेड़ी पुलिया चौराहे से पुरवा
जागरण संवाददाता, बांदा : चित्रकूट में झांसी-मीरजापुर हाईवे पर स्थित बेड़ी पुलिया चौराहे से पुरवा तरौहां मार्ग पर तीन करीब तीन किलोमीटर आगे बढ़ते ही कानों में वेद मंत्रों की गूंज हर किसी को चौंका देती है। ये गूंज किसी देवालय से नहीं, बल्कि गुरुकुल के उन बच्चों की होती है, जो मंत्रों से भारतीय संस्कृति को और प्रखर बना रहे हैं। प्रतिदिन हवन-यज्ञ और रुद्राभिषेक कर रहे हैं। आधुनिकता की चकाचौंध के बीच आयुषग्राम गुरुकुलम आवासीय स्कूल में छात्रों की दिनचर्या प्राचीन काल की शिक्षा पद्धति का बोध कराती है।
बांदा की नरैनी तहसील अंतर्गत ग्राम पनगरा निवासी डॉ मदन गोपाल ने भारतीय संस्कृति को जागृत रखने के लिए अनूठी पहल की है। हर वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने के लिए उन्होंने चित्रकूट जिले के सूरज कुंड रोड पर आयुष ग्राम गुरुकुलम के नाम से करीब तीन बीघा जमीन में आवासीय स्कूल खोला है। इसमें बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाई कराई जाती है। उनके रहने तक की फ्री व्यवस्था है। हर जगह हावी हो रही पाश्चात्य सभ्यता के कारण वर्ष 2012 में उनके मन में ये विचार आया। इसके बाद वर्ष 2015 में उन्होंने गुरुकुल की नींव रखी थी। उन्हें शुरू में गुरुकुल चलाने की मान्यता नहीं मिली थी। इसलिए अन्य विद्यालयों से उसे संबद्ध कर आगे बढ़ाया। उन्होंने यूपी बोर्ड से गुरुकुल की पिछले वर्ष कक्षा छह से 10 तक की मान्यता कराई। इस समय वहा स्थानीय के साथ ही दिल्ली, झांसी, कानपुर, राठ, फतेहपुर, महोबा आदि के 28 बच्चे पंजीकृत हैं। गुरुकुल के छात्र पूरी तरह भारतीय संस्कृति व सभ्यता में रचे-बसे नजर आते हैं। यहां प्रवेश व शिक्षण शुल्क न लेने के साथ किसी तरह की कोई सरकारी मदद भी नहीं ली जाती है। चिकित्सालय की कमाई से वह आवासीय विद्यालय की व्यवस्थाएं पूरी करते हैं।
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गुरुकुल में छात्रों की ऐसी रहती दिनचर्या
- 04 बजे सुबह जगने के साथ प्रभु स्मरण करना।
- धरती मा को प्रणाम करके माता-पिता और गुरु का स्मरण।
- गायत्री जप, यज्ञ, हवन और रुद्राभिषेक।
- सुबह 30 मिनट गीता पाठ बाद में स्वाध्याय।
- सुबह 9 बजे प्रार्थना सभा के बाद कक्षाओं की शुरुआत।
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कोरोना काल में भी 15 बच्चों ने ली शिक्षा
कोरोना काल में जब सभी विद्यालय बंद थे, तब भी गुरुकुल में शारीरिक दूरी के नियमों के पालन संग पढ़ाई जारी रही। इसमें अभिभावकों की सहमति रही। वहीं, संस्थापक डॉ मदन गोपाल बाजपेयी ने खुद संक्रमण से बचाव की आयुर्वेदिक औषधियों के साथ ही काढ़ा आदि का भी छात्रों को सेवन कराया।