पाला से अपनी ही फसल नहीं बचा सका कृषि विभाग
कृषि विभाग आम किसानों की कौन कहे अपने ही सरकारी कृषि फार्म की फसलों को पाले से बचाने में सफल नहीं रहा। यहां करीब सात एकड़ क्षेत्रफल में बोई अरहर की फसल पाला से झुलसकर बर्बाद हो गई। अब ठंड से हुए फसलों के नुकसान की भरपाई जायद फसलों से करने की तैयारी है। 145 एकड़ में बोई फसल भी पाले की चपेट में है।
संवाद सहयोगी, अतर्रा : कृषि विभाग समय-समय पर किसानों को मौसम की जानकारी देने के साथ ही फसलों के रखरखाव व बचाव के बारे में बताता है। मगर पिछले दिनों बारिश के बाद गिरे पाले ने किसानों की दूर कृषि विभाग की ही फसल को नष्ट कर दिया। विभाग की ओर से बोई गई करीब सात बीघे अरहर की फसल पाले से झुलसकर बर्बाद हो गई। हालाकि विभाग अब ठंड से हुए फसलों के नुकसान की भरपाई जायद फसलों से करने की तैयारी में है। इसके अलावा 145 एकड़ में बोई फसल भी पाले की चपेट में है।
अतर्रा का राजकीय कृषि फार्म हाउस 174 एकड़ भूमि में फैला है। इसमें 145 एकड़ जमीन पर खेती होती है। सरकार यहां उन्नतशील फसलों की बुआई तकनीक से करवाती है। जिसकी देखादेखी क्षेत्रीय किसान भी उन बीजों को अपनाते हैं। खरीफ फसल में यहां धान के अलावा दीर्घकालिक अरहर की खेती बड़े पैमाने पर होती है। मौसम की मार ने यहां की सात एकड़ में बोई अरहर की फसल पर ऐसा प्रभाव डाला है कि खड़ी फसल हरे की जगह काली पड़ गई है । कटी हुई फसल धूप न मिलने से खराब हो रही हैं। इतना ही नहीं रवि फसल में बोया गया 10.5 हेक्टेयर में चना व 4 हेक्टेयर में मसूर अंकुरित होने के बाद बढ़ नहीं रहे हैं। कृषि फार्म में 20 हेक्टेयर में बोए गेंहू की हालत यह है कि बारिश होने से खेतों के अंदर ही बीज सड़ गया है। बेमौसमी बारिश के कारण खेतों में मौजूद अधिक नमी के चलते अभी भी 13.5 हेक्टेयर भूमि बुआई से वंचित पड़ी हुई है। कृषि फार्म अधीक्षक लेखराज निरंजन ने बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष लगभग 15 लाख रुपये के नुकसान का आंकलन कर रहे हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए उच्चाधिकारियों सहित जिला कृषि अधिकारी बांदा को पत्र लिख जायद फसल मूंग-उर्द बोने की अनुमति मांगी है। फार्म अधीक्षक ने प्रभावित किसानों को भी 15 फरवरी से 15 मार्च तक 60 दिनों में तैयार होने वाली मूंग व 80 दिनों में तैयार होने वाली उर्द के बुआई की बात कही है।
---------- दीर्घकालिक अरहर किसानों को लाभदायक
फार्म अधीक्षक लेखराज निरंजन ने बताया कि यहां आइपीए 203 अरहर यहां की मिट्टी व जलवायु के हिसाब से उपयुक्त है। मौसम की मार से सभी फसलें खराब होती हैं। पर यह अच्छा उत्पादन दे रही है। मौसम अनुकूल मिलने पर अरहर की पैदावार प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल होती है।