गर तर्जुबों का तुमको समर चाहिए..
अब्दुर्रहीम चिश्ती ने मुशायरे की शुरुआत नाते पाक से की
बलरामपुर : बज्म-ए-तनवीरे अदब की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन व मुशायरे में शायरों ने अपने कलाम से शमा बांधा। अब्दुर्रहीम चिश्ती ने मुशायरे की शुरुआत नाते पाक से की।
शादाबुल हसन ने फरमाया 'सारा मयखाना पी जाऊंगा मैं मगर, तेरे हाथों से शामो शहर चाहिए'। आलम धानेपुरी ने पढ़ा 'फिर सियासत में आना पड़ेगा हमें, अपनी खोई रियासत अगर चाहिए।' डॉ. अनवर मुजतर ने कहा 'मेरे यारों तरक्की अगर चाहिए, वास्ते इसके इल्मो हुनर चाहिए।' महमूदुल हक ने पढ़ा 'गर तर्जुबों का तुमको समर चाहिए, फिर तो आंगन में बूढ़ा समर चाहिए।' डॉ. शाद बलरामपुरी ने पेश किया 'मेरा तो राहबर चाहता है यही, अंध भक्त बेहुनर हर बशर चाहिए।' खालिद अजीजी ने पढ़ा 'हम नजर चाहिए मोतबर चाहिए, आप सा ही मुझे हमसफर चाहिए।' डॉ. हादिम ने बयां किया 'सर पे साया भी हो सरपरस्ती भी हो, घर के आंगन में बड़ा शजर चाहिए।' कादिर आजाद ने पढ़ा 'कोई रुतबा न लालो गुहर चाहिए, मेरी मेहनत का मुझ को समर चाहिए।' मुशायरे की अध्यक्षता डॉ. सुभान शाद व संचालन डॉ. शमसुर्रहमान ने किया। रफीक शाह वारसी, रईस, सगीर खां, गुलाम रहमानी, नसीम तुलसीपुरी, खालिद अजीजी मौजूद रहे।