सामग्री खरीद में हुआ खेल, थारू विकास का दावा फेल
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बलरामपुर : तीन दशक पूर्व विशुनपुर विश्राम गांव में वर्ष 1980 में थारू जनजाति के उत्थान के लिए शुरू हुई थारू विकास परियोजना जिम्मेदार अफसरों के मनमानी की भेंट चढ़ गई है। कागजों में संचालित परियोजना का कोई पुरसाहाल नहीं है। अफसरों के धरातल पर न उतरने से परियोजना कार्यालय में मनमानी चरम पर है। स्ट्रीट लाइट लगाने, बैट्री, सोफा व एलसीडी की खरीद में गोलमाल किए जाने की बात दबी जबान कही जा रही है। बावजूद इसके अफसर मामले से अनजान बने हुए हैं। चौकीदार के सहारे कार्यालय :
थारू विकास परियोजना कार्यालय का संचालन स्वीपर व चौकीदार के भरोसे हो रहा है। कनिष्ठ लिपिक नवीन कुमार तिवारी अपने आवास में बैठकर कार्यालय चलाता है। परियोजना के तहत मार्च में स्ट्रीट लाइटें लगवाई गई थीं। जिनमें से अधिकांश खराब हो चुकी हैं। कार्यालय के लिए खरीदी गई अन्य सामग्री भी नदारद है। कनिष्ठ सहायक का कहना है कि वित्तीय कार्यों से संबंधित जानकारी अधिकारी ही दे सकते हैं। ऐसे तो होने से रहा उत्थान :
पूर्व जिला पंचायत सदस्य मनोहर लाल थारू का कहना है कि थारू विकास परियोजना के अंतर्गत क्या कार्य कराए जा रहे हैं, इसकी किसी को जानकारी ही नहीं हो पाती है। ऐसे में थारू समाज के उत्थान की बात बेमानी है। इमिलिया कोड़र के प्रधान मंगल प्रसाद थारू का कहना है कि थारू विकास परियोजना को समाप्त कर देना चाहिए। जब से परियोजना स्थापित हुई है, तबसे सिर्फ गरीबों का शोषण हुआ है। भुसहर फोगही के बीडीसी लड्डन व कालूराम ने बताया कि खंभों पर लाइट, पशु अस्पताल व कार्यालय भवन की मरम्मत के नाम पर सरकारी धन का बंदरबांट किया जा रहा है। जिम्मेदार के बोल :
जिला समाज कल्याण अधिकारी उमाशंकर प्रसाद ने बताया कि वह लखनऊ में न्यायालय के कार्य से आए हैं। लौटने पर ही कोई जानकारी दे सकेंगे।