करोड़ों का 'खेल', स्वच्छता रैं¨कग में फेल
बलरामपुर-स्वच्छता रैं¨कग 2018 में अपनी दावेदारी सुनिश्चित करने के लिए करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दि
बलरामपुर-स्वच्छता रैं¨कग 2018 में अपनी दावेदारी सुनिश्चित करने के लिए करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिए गए लेकिन, नतीजा सिफर रहा। स्वच्छता सर्वेक्षण में नगर की साफ तस्वीर पेश करने में जिले के चारों नगर निकाय पूरी तरह फिसड्डी साबित हुए। ऐसे में एक बार फिर जिले का नाम स्वच्छ शहरों की सूची से बाहर हो गया। नगर पालिका बलरामपुर, उतरौला, नगर पंचायत तुलसीपुर व पचपेड़वा में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन, दो पालियों में सफाई के लिए सफाईकर्मियों का इजाफा, शहरों में डस्टबिन की उपलब्धता, स्वच्छता एप एवं सार्वजनिक शौचालय निर्माण की कवायदें धरी की धरी रह गईं, जो नगर पालिका व नगर पंचायत प्रशासन के अफसरों की चूक को उजागर करता है। यदि जिम्मेदार अफसरों ने अपनी कार्यशैली में सुधार कर स्वच्छता अभियान को गंभीरता से लिया होता, तो शायद आज जिले के शहरों के माथे से गंदगी का कलंक मिट गया होता।
-----------
नहीं लगी बायोमीट्रिक मशीन
स्वच्छता सर्वेक्षण में बायोमीट्रिक मशीन से उपस्थिति के लिए अंक निर्धारित हैं। बावजूद इसके जिम्मेदारों ने इस अहम पहलू पर ध्यान नहीं दिया। जिले के चारों नगर निकाय में से कहीं भी अब तक हाजिरी के लिए बायोमीट्रिक मशीन नहीं लगी है। आज भी अधिकारी व कर्मचारी रजिस्टर पर ही हस्ताक्षर करते हैं। रैं¨कग में अंक न मिलने का यह मुख्य कारण है।
------------
स्वच्छता एप का नहीं हुआ प्रचार
नगर को स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छता एप तो जारी कर दिया गया लेकिन, लोगों को जागरूक करने के लिए इसका व्यापक प्रचार-प्रचार नहीं कराया गया। यही नहीं इस एप पर शिकायतों के निस्तारण में भी अफसरों ने रुचि नहीं दिखाई। कूड़ा ढोने वाले किसी भी वाहन में जीपीएस सिस्टम नहीं लग सका। सर्वेक्षण के लिए निर्धारित 4000 अंकों में नगर पालिका डाउनलो¨डग का टारगेट 160 अंक, शिकायत निराकरण 160, स्वच्छता एप 160, बायोमीट्रिक उपस्थिति में 28 अंक के अलावा शौचालय निर्माण, अतिक्रमण, सफाई समेत अन्य कार्यों पर अलग-अलग नंबर निर्धारित थे।
---------------
तीन बार हुआ सर्वे
जिले में स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए तीन बार टीमें आईं और चारों नगर निकायों का जायजा लिया। इसमें कागजी डाटा के आधार पर सर्विस लेवल प्रोग्रेस में 1400 अंक, टीम द्वारा मूल्यांकन पर 1200 व नागरिकों के फीडबैक में 1200 अंक निर्धारित थे। ऐसे में स्वच्छता रैं¨कग में जिले की किसी नगर पालिका व नगर पंचायत का नाम शामिल न होना स्वच्छता अभियान की हकीकत बयां करता है।
----------------
इन ¨बदुओं पर खर्च हुई रकम
स्वच्छता रैं¨कग में सर्वोच्च अंक हासिल करने के लिए सभी नगर निकायों में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन, सफाईकर्मियों की तैनाती, मुहल्ले में कूड़ेदान की उपलब्धता, स्वच्छता अभियान के लिए रैली, निबंध, चित्रकला प्रतियोगिता, नालियां व नालों की सफाई समेत अन्य कार्यों पर करोड़ों रुपये की रकम खर्च की लेकिन, शहरों की सूरत नहीं बदल सकी। सड़क पर डंप कूड़ा शहर की असली तस्वीर पेश करता दिखता है। यही नहीं सामुदायिक शौचालयों के निर्माण की रफ्तार तेजी नहीं पकड़ सकी। चारों निकायों में अब तक एक भी सामुदायिक शौचालय पूरा नहीं हो सका है। जिससे ओडीएफ का सपना अधूरा है।
--------------
अध्यक्ष प्रतिनिधि को जानकारी नहीं
नगर पालिका परिषद अध्यक्ष के प्रतिनिधि शाबान अली ने बताया कि उन्हें रै¨कग की कोई जानकारी नहीं है। उधर ईओ राकेश जायसवाल का सीयूजी मोबाइल बंद था। उन्हें अवकाश पर होना बताया गया।