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Sanskarshala 2022: हर क्षेत्र में इंटरनेट मीडिया का असर, मगर गूगल नहीं है डाक्टर- लेफ्टिनेंट डा. देवेंद्र चौहान

Sanskarshala 2022- परिवार व समाज में हो रहे गतिविधियों व घटनाओं को सबसे पहले इंटरनेट मीडिया पर साझा करना परंपरा बनती जा रही है। बच्चे हों या बड़े सभी के दिन की शुरुआत मोबाइल व इंटरनेट से होती है।

By Shlok MishraEdited By: Published: Thu, 29 Sep 2022 10:11 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 03:03 AM (IST)
Sanskarshala 2022: हर क्षेत्र में इंटरनेट मीडिया का असर, मगर गूगल नहीं है डाक्टर- लेफ्टिनेंट डा. देवेंद्र चौहान
लेखक महारानी लाल कुंवरि महाविद्यालय के एनसीसी अधिकारी हैं।

बलरामपुर। आधुनिक युग में हाईटेक शिक्षा अब एक जरूरत बन चुकी है। सरकार भी शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क स्मार्टफोन व टैबलेट का वितरण कर रही है। चूंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह स्मार्टफोन का इस्तेमाल भी सकारात्मक व नकारात्मक दोनों रूपों में होता है। हम किस रूप में स्मार्ट फोन व इंटरनेट का उपयोग करते हैं,

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यह हमारी सोच पर निर्भर करता है।

परिवार व समाज में हो रहे गतिविधियों व घटनाओं को सबसे पहले इंटरनेट मीडिया पर साझा करना परंपरा बनती जा रही है। बच्चे हों या बड़े, सभी के दिन की शुरुआत मोबाइल व इंटरनेट से होती है। कई बार कुछ नया कार्य करने जैसे गाड़ी खरीदने, बीमारी में कौन सी दवा खाएं, सेहतमंद बनने के लिए कौन सा आहार व फूड सप्लीमेंट लें, किस विषय की कैसे पढ़ाई करें आदि बातों के लिए बच्चे अब इंटरनेट की सलाह पर निर्भर होते जा रहे हैं। इससे अपने से बड़ों से मार्गदर्शन लेने का बच्चों का संस्कार प्रभावित हो रहा है। यह परंपरा दिन प्रतिदिन हावी होती जा रही है।

दैनिक जागरण की संस्कारशाला में डिजिटल संस्कार के अंतर्गत प्रकाशित क्षमा शर्मा की कहानी ‘सलाह और सलाहकारों के चयन में सावधानी’ सभी के लिए प्रेरणादायक है। दीपू ने जब आशीष को बाडी बिल्डिंग के लिए इंटरनेट मीडिया के सुझावों को बताया, तो उसकी बातें असर कर गईं। आशीष ने तय कर लिया कि वह दिन भर विभिन्न साइट्स व प्लेटफार्म्स पर बाडी बिल्डिंग के वीडियो देखेगा। 

एक दिन जब आशीष स्कूल से लौटा तो उसकी मां जिद करके खाना खिलाने लगीं। उसने कहा कि सुबह प्रोटीन पाउडर घोलकर पी लिया है। मम्मी ने पापा से जो कहा तो आशीष के होश उड़ गए। दीपू के पापा ने फोन पर बताया कि वह स्कूल में बेहोश होकर गिर गया था। अब ठीक है, लेकिन कई दिन उसे अस्पताल में रहना होगा। दीपू की मां रो-रोकर कह रही थीं कि क्या करें, आजकल बच्चे मानते ही नहीं। 

इंटरनेट पर जो दिखता है, उसे ही सच मान लेते हैं। पापा का हंसकर यह कहना उचित था कि अगर गूगल ही डाक्टर है तो हम डाक्टरों की क्या जरूरत है। इस सारगर्भित कहानी के माध्यम से बच्चों को शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बड़ों की सलाह लेने व इंटरनेट की जानकारी पर विश्वास कर खुद ही सेहत से खिलवाड़ न करने का सबक बताया गया है। इसके लिए दैनिक जागरण को साधुवाद है।

(लेखक महारानी लाल कुंवरि महाविद्यालय के एनसीसी अधिकारी हैं।)


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