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..तो दागदार ही रहीं नगर पालिका व पंचायतें

स्वच्छ सर्वेक्षण में नगर की साफ तस्वीर पेश करने में जिले के चारों नगर निकाय एक बार फिर पूरी तरह फिसड्डी साबित हुए। स्वच्छता रैंकिग 2019 में अपने दावेदारी सुनिश्चित करने के लिए करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिए गए लेकिन नतीजा सिफर रहा। नगर पालिका बलरामपुर उतरौला नगर पंचायत तुलसीपुर व पचपेड़वा में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन दो पालियों में सफाई डस्टबिन की उपलब्धता स्वच्छता एप एवं सार्वजनिक शौचालय निर्माण की कवायदें धरी की धरी रह गईं। स्वच्छता रैंकिग 201

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Mar 2019 11:26 PM (IST)Updated: Wed, 06 Mar 2019 11:26 PM (IST)
..तो दागदार ही रहीं नगर पालिका व पंचायतें
..तो दागदार ही रहीं नगर पालिका व पंचायतें

बलरामपुर :स्वच्छ सर्वेक्षण में नगर की साफ तस्वीर पेश करने में जिले के चारों नगर निकाय एक बार फिर पूरी तरह फिसड्डी साबित हुए। स्वच्छता रैंकिग 2019 में अपने दावेदारी सुनिश्चित करने के लिए करोड़ रुपये पानी की तरह बहा दिए गए लेकिन, नतीजा सिफर रहा। नगर पालिका बलरामपुर, उतरौला, नगर पंचायत तुलसीपुर व पचपेड़वा में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन, दो पालियों में सफाई, डस्टबिन की उपलब्धता, स्वच्छता एप एवं सार्वजनिक शौचालय निर्माण की कवायदें धरी की धरी रह गईं। स्वच्छता रैंकिग 2018 में फिसड्डी साबित होने के बाद जिम्मेदारों ने सबक नहीं लिया। जिससे जिले से दाग का धब्बा नहीं हट सका। अधिशासी अधिकारी नपाप बलरामपुर का कहना है कि स्वच्छता रैंकिग के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। नहीं लगी बायोमीट्रिक मशीन :

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-स्वच्छ सर्वेक्षण में बायोमीट्रिक मशीन से उपस्थिति के लिए अंक निर्धारित हैं। बावजूद इसके जिम्मेदारों ने इस अहम पहलू पर ध्यान नहीं दिया। जिले के चारों नगर निकाय में से कहीं भी अब तक हाजिरी के लिए बायोमीट्रिक मशीन नहीं लगी है। आज भी अधिकारी व कर्मचारी रजिस्टर पर ही हस्ताक्षर करते हैं।

5000 अंक थे निर्धारित :

-सर्वेक्षण के लिए इस बार 5000 अंक निर्धारित किए गए थे। 12 मानकों के आधार पर शहरों का आंकलन किया गया। इसमें नालियों व जल स्त्रोतों की साफ-सफाई, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन, निर्माण व तोड़फोड़ की गतिविधियों के दौरान निकलने वाले कचरे के निस्तारण समेत अन्य बिदु शामिल हैं। नहीं शुरू हुए शौचालय :

-स्वच्छता रैंकिग में सर्वोच्च अंक हासिल करने के लिए सभी नगर निकायों में करोड़ों रुपये खर्च हो गए, लेकिन शहरों की सूरत नहीं बदल सकी। सड़क पर डंप कूड़ा शहर की असली तस्वीर पेश करता दिखता है। सामुदायिक शौचालय तो बनवा दिए गए, लेकिन अब तक इनका ताला नहीं खुल सका।


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