यहां कभी गूंजती थी जंगल के राजा की दहाड़
समाजसेवी आजाद ¨सह की मानें तो वह बाल्य अवस्था में कई बार चिड़ियाघर देखने गए। बताया कि आनंबाग करीब 100 बीघे में फैला था। यहां स्थित तालाब में विदेशी पक्षियों का कलरव सुनने के लिए अंग्रेज भी आते थे। जंगल के राजा की गर्जना से समूचा क्षेत्र गूंजता था। राज परिवार की महिलाएं व बच्चे यहां मनोरंजन के लिए आते थे। आजादी के बाद प्रशासनिक अफसरों ने चिड़ियाघर को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। करीब 65 वर्ष पूर्व यहां के जानवरों को लखनऊ के चिड़ियाघर भेज दिया। इसके बाद आनंदबाग की पहचान धीरे-धीरे गुम होती चली गई।
बलरामपुर:कभी राज परिवार के चिड़ियाघर के नाम से मशहूर आनंदबाग में वन्य जीवों की चहलकदमी देखने को लोग आतुर रहते थे। आज वहां वीरानी छाई है। जहां जंगल के राजा की दहाड़ के साथ ही हाथी, चीता, भालू, मगरमच्छ, हिरन, बारह¨सघा समेत कई जंगली जानवरों का बसेरा था। आजादी के बाद यहां के जानवरों को लखनऊ के चिड़ियाघर भेज दिया गया। बुजुर्ग आनंदबाग की पहचान आज भी चिड़ियाघर के नाम से करते हैं। जबकि युवा पीढ़ी इसके इतिहास से पूरी तरह अनजान है। एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत को भी मरणोपरांत पहले यहीं रखा गया था। जिसका कंकाल आज भी एमएलके महाविद्यालय के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है। राज परिवार ने बनाया था चिड़ियाघर :
-समाजसेवी आजाद ¨सह की मानें तो वह बाल्य अवस्था में कई बार चिड़ियाघर देखने गए। बताया कि आनंबाग करीब 100 बीघे में फैला था। यहां स्थित तालाब में विदेशी पक्षियों का कलरव सुनने के लिए अंग्रेज भी आते थे। जंगल के राजा की गर्जना से समूचा क्षेत्र गूंजता था। राज परिवार की महिलाएं व बच्चे यहां मनोरंजन के लिए आते थे। आजादी के बाद प्रशासनिक अफसरों ने चिड़ियाघर को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। करीब 65 वर्ष पूर्व यहां के जानवरों को लखनऊ के चिड़ियाघर भेज दिया। इसके बाद आनंदबाग की पहचान धीरे-धीरे गुम होती चली गई। युवा जानें यहां की धरोहर :
-प्रो. नागेंद्र ¨सह का कहना है कि बलरामपुर का गौरवशाली इतिहास रहा है। युवा पीढ़ी ऐतिहासिक धरोहरों से अनजान है। आनंदबाग में रखे गए एशिया के विशालतम हाथी चांदमूरत के कंकाल को 1955 में म्यूजियम में लाया गया था। आज भी एमएलके महाविद्यालय में मानव से लेकर पशु-पक्षियों व सरीसृप वर्ग के अवशेष मौजूद हैं। जो यहां के इतिहास के साक्षी हैं।