लाकडाउन में लौटे लाल, चुनाव में ठोक रहे ताल
रसूख व बेहतर रोजगार का जरिया से पैदा हुई लालच माटी का कर्ज चुकाने आया हूं कहकर मांग रहे मौका
बलरामपुर : पंजाब, मुंबई समेत अन्य शहरों में परिवार के साथ रहने वाले लोग लाकडाउन में गांव आए तो यहीं रह गए। अब पंचायत चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। परदेश में पाबंदियों के चलते दो-दो दिन भूखे प्यासे रहे। मौका मिला तो घर लौटे। रास्ते में मीलों पैदल चलकर सफर का दर्द सहा। गांव पहुंचे तो अपनों के बीच अजनबी की तरह कई रातें स्कूलों व पंचायत भवनों में गुजारी। यहां से फुरसत मिली तो गांव में रोजी-रोटी के लिए संघर्ष किया। साथ ही लोगों को भरोसा दिलाया कि उन्हीं के बीच रहेंगे और अब बाहर नहीं जाएंगे।
धीरे-धीरे जान-पहचान बढ़ी तो जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान व क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख बनकर ग्रामीणों की अगुवाई का सपना सजाने लगे। इसे पूरा करने के लिए अब परदेशी बाबू चुनाव मैदान में ताल ठोक राजनीति का सफर तय करने का ख्वाब बुन रहे हैं।
कई वर्षो तक मुंबई में रहकर अपनी पहचान बनाने वाले गंगापुर लखना के इंसान अली प्रधान पद के लिए दावेदारी ठोंक रहे हैं। शेखापुर का पताली लाकडाउन में पिल्लौर से घर लौटा था। कई दिनों तक स्कूल फिर घर में क्वारंटीन रहा तो प्रधानजी का जलवा देख वह अब अपनी पत्नी को प्रधानी का चुनाव लड़ा रहे हैं। यहीं के निवासी हैदर अली जो बाहर रहते थे, उन्होंने अपनी मां को चुनाव मैदान में उतारने के लिए पर्चा खरीदा है। प्रतिद्वंद्वी लगा रहे 'परदेशियों से न अखियां मिलाना' की टेर :
चुनाव में मैदान में उतरे परदेशी बाबू 'माटी का कर्ज चुकाने आया हूं। पड़ी बेड़ियां विकास को बेटा बन खोलने आया हूं' कहकर एक बार का मौका मांग रहे हैं। वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी 'परदेशियों से न अंखियां मिलाना, बागों में जब-जब फूल खिलेंगे, तब-तब ये हरजाई मिलेंगे' के गाने सुनाकर अपनी जीत पक्की करना चाह रहे हैं। वे ग्रामीणों को यह भी समझा रहे हैं कि चुनाव खत्म होते ही परदेशी बाबू फिर फुर्र हो जाएंगे फिर उनके समर्थकों का मददगार कोई नहीं होगा। फिलहाल, ललिया गांव में लोग ऐसी ही चर्चा कर रहे हैं।