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आंख व मुंह पर पट्टी बांधकर पुजारी यहां करते हैं मां दुर्गा की पूजा, शक्ति अर्जित करने को भक्त आते हैं शक्तिपीठ

तीन-तीन घंटे की दो पालियों में होती है आराधना सिद्धि हासिल करने को नौ दिनों तक करते हैं तप

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 Oct 2021 11:01 PM (IST)Updated: Tue, 05 Oct 2021 11:01 PM (IST)
आंख व मुंह पर पट्टी बांधकर पुजारी यहां करते हैं मां दुर्गा की पूजा, शक्ति अर्जित करने को भक्त आते हैं शक्तिपीठ

अमित श्रीवास्तव, बलरामपुर:

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51 सिद्ध शक्तिपीठों में शुमार देवीपाटन मंदिर स्थित मां पाटेश्वरी देवी की पूजा पद्धति अद्भुत है। मंदिर में दूरदराज से सिद्धि हासिल करने के लिए आने वाले तांत्रिक देवी की कठिन उपासना करते हैं। नौ दिन तक बिना अन्न, जल ग्रहण किए देवी की शक्ति पाने को आसन जमाए रहते हैं।

यही नहीं, शक्तिपीठ पर आने वाले श्रद्धालुओं को भी यहां अलौकिक शक्ति की अनुभूति होती है। मंदिर में तीन-तीन घंटे की दो पालियों में प्रतिदिन कठिन साधना की जाती है। पुजारी आंख व मुंह पर पट्टी बांधकर मंदिर के कपाट बंद कर लेते हैं। इसके बाद एक हाथ से घंटी व दूसरे हाथ से आरती उतारते हैं। अंदर पुजारी द्वारा घंटी बजाने की धुन पर गर्भगृह के बाहर भारी-भरकम नगाड़े व घंटे बजते हैं। मां की पूजा अलौकिक व अद्वितीय है।

अखंड धूना से शुरू होती पूजा:

शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर की पूजा देश के विभिन्न देवी मंदिरों की उपासना में सबसे कठिनतम पूजा है। अ‌र्द्धरात्रि के दूसरे पहर एक से चार बजे तक का पूजा का समय निश्चित है। इसका समय कभी नहीं बदलता है। गोरक्षनाथ मठ के अधीन इस मंदिर की पूजा नाथ संप्रदाय के हाथों में है। इसलिए आदिशक्ति की पूजा सबसे पहले देवीपाटन मंदिर में स्थित अखंड धूना से शुरू होती है। पुजारी एक हाथ में सामग्री व दूसरे हाथ में घंटी लेकर मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करता है। पुजारी की आंख और मुंह कपड़े से ढका रहता है। गर्भ गृह में जाकर मंदिर का पट बंद कर लेता है। इसके बाद साधना शुरू होती है। बाहर बड़े-बड़े घंटे और नगाड़े बजाए जाते हैं। हर 20 मिनट पर नगाड़े की धुन बदलती रहती है।

पाताल तक जाती है सुरंग:

गर्भ गृह में स्थित चबूतरे की मान्यता है कि यह सुरंग पाताल तक जाती है। मान्यता है कि देवी सती का वाम स्कंध यहीं गिरा था। तब से यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। महंत मिथिलेश नाथ योगी का कहना है कि इस शक्तिपीठ में योगियों द्वारा की जाने वाली पूजा पद्धति अत्यंत दुर्लभ है। यहां की पूजा सामान्य नहीं है। इसीलिए यह सिद्ध शक्तिपीठ है।


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