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परिवार नियोजन में नंबर वन गांव में संचार क्रांति की दरकार

परिवार नियोजन में नंबर वन गांव में संचार क्रांति की दरकार -नेटवर्क न होने से देश-दुनिया से कटे हैं आदिवासियों के गांव === बड़ा मुद्दा === चित्र-0

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 11:08 PM (IST)Updated: Fri, 10 May 2019 11:08 PM (IST)
परिवार नियोजन में नंबर वन गांव में संचार क्रांति की दरकार
परिवार नियोजन में नंबर वन गांव में संचार क्रांति की दरकार

हिमालय की तलहटी में बसे सिरसिया ब्लॉक के आदिवासी गांवों की रहन-सहन व संस्कृति अलग पहचान रखती है। आधुनिक दौर से जुड़े रहते हुए परंपराओं में यहां के लोगों का अटूट विश्वास है। तीज-त्योहार से लेकर मांगलिक आयोजन की परंपरा भी यहां कुछ हट कर है। अशिक्षा के चलते अरसे तक आदिवासी समाज खुद को पिछड़ा महसूस कर रहा था। बदलाव को अंगीकार कर विकास की दौड़ में यहां के लोग रफ्तार के साथ चले तो नए कीर्तिमान गढ़ने लगे। इसी ब्लॉक के मोतीपुर कला गांव के हर एक परिवार ने परिवार नियोजन के साधन अपना रखे हैं। इसके अलावा करीब 16 गांवों में नारी सशक्तीकरण व जनसंख्या नियंत्रण की मिसाल देखने को मिलेगी। इस सबके बीच डिजिटल इंडिया के दौर में भी यहां के लोग देश-दुनिया से कटे हैं। इसका मलाल भी है। भचकाही, रवलपुर, बनकटी, थाढ़ापुरवा आदि गांवों की लगभग साढ़े छह हजार आबादी संचार सेवाओं के बिना जीवन यापन कर रही है। समस्या के समाधान के लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों की चौखट तक दस्तक दे चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इस गंभीर मुद्दे को चुनावी एजेंडे में भी किसी दल ने शामिल नहीं किया है। श्रावस्ती से भूपेंद्र पांडेय की रिपोर्ट.. -सिरसिया ब्लॉक में सोहेलवा जंगल के बीच स्थित भचकाही, रवलपुर बनकटी, मोतीपुरकला, रनियापुर, कटकुइयां, ढाठूपुरवा, मसहाकला, रेहारपुरवा, बनगई व बच्चूपुरवा समेत लगभग 16 आदिवासी गांवों में लगभग 50 हजार की आबादी निवास करती है। इन गांवों तक पहुंचने के लिए यातायात के साधनों की दुश्वारियां हैं। मूंज की ढलिया व कपड़े पर कढ़ाई की कला से यहां की महिलाओं ने समूचे प्रदेश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। प्रदेश सरकार के एक जिला, एक उत्पाद कार्यक्रम में भी यहां के थारू क्राफ्ट को स्थान मिला है। इंटरनेट की व्यवस्था मिले तो आदिवासी महिलाएं अपने उत्पाद को ऑनलाइन मार्केट में उतार सकती हैं पर यहां के लोग मोबाइल फोन पर अपनों से बात करने को भी तरस रहे हैं। गांव के लोगों ने वोट मांगने आने वाले लोगों के लिए पोस्टर, बैनर छपवा रखा है। बिना कुछ बोले अपना संदेश देते हैं कि हमें आश्वासन नहीं नेटवर्क चाहिए। इनसेट :

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छलका ग्रामीणों का दर्द :

- भचकाही के प्रताप नारायन वर्मा कहते हैं कि मोतीपुरकला में बीएसएनएल व जियो का टॉवर लगा है, लेकिन इसके नेटवर्क से अन्य गांव को फायदा नहीं हो रहा है। आशीष कहते हैं कि किसी से बात करना हो तो छत पर खड़े होकर नेटवर्क ढूंढ़ना पड़ता है। ईश्वरदीन चौधरी कहते हैं कि आदिवासी गांव के अलावा मुड़कट्टा नाका, भचकाही नाका व गुज्जर गौरी नाका पर एसएसबी की चौकियां हैं। एसएसबी जवानों को भी दुविधा होती है। नीतू चौधरी कहती हैं कि इंटरनेट पर घर बैठे देश-दुनिया की जानकारी मिल सकती है, लेकिन यह व्यवस्था हम लोगों पर लागू नहीं होती है। बूंदीराम व सोनम कहते हैं कि परिवार के लोग बाहर रहकर नौकरी करते हैं। किसी का हालचाल भी नहीं मिल पाता है। शीतल, किशोर कुमार, आशारानी, कंधई व विजयपाल कहते हैं कि किसी प्रत्याशी के एजेंडे में नेटवर्क की समस्या न होना पीड़ादायक है। - इनसेट

क्यों है मुद्दा :

-आदिवासी गांव के लोगों का रहन-सहन देखने के लायक होता है। यह गांव खुद में एक पर्यटन स्थल की तरह हैं। लंबे समय से यहां के लोग संचार सेवाओं को दुरुस्त कराने की मांग कर रहे हैं। इंटरनेट से जुड़ें तो गांवों की लोक कला देश-दुनिया में चर्चा बटोर सकती है। यहां पर्यटकों की आमद शुरू हो तो रोजगार के नए अवसर भी जन्म लेंगे। तरह-तरह की सूचनाओं से जुड़े रहने का लाभ मिलने के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे परिवार के सदस्यों के साथ जुड़ाव भी बना रहेगा।

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