धान फसल पर ही बची थी उम्मीद, वह भी सड़ने लगी
बाजार सहित चट्टी चौराहों पर इन दिनों नीम हकीमों की चांदी कट रही है।
जासं, बेरुआरबारी (बलिया) : ज्यादा बारिश से अरहर, मक्का, मूंग, उड़द व धान की फसल पहले ही बर्बाद कर दिया था। किसानों के बचे धान ही एकमात्र उम्मीद की किरण थी वह भी खेतों में भरे लबालब पानी में गिर जाने से सड़ने लगा है। बचे खुचे धान को सड़ने से बचाने के लिए घुटने तक पानी में गिरी धान की फसल को निकालने में किसानों के माथे पर बल आ गया है।
किसान सरकार से बार-बार मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं लेकिन मुआवजा तो दूर कोई अधिकारी या जनप्रतिनिधि किसानों की हुई क्षति को देखने तक नहीं आया। इससे क्षेत्र के किसानों में आक्रोश व्याप्त है। अपनी बची खुची फसलों को बचाने के लिए किसानों को चिता सताने लगी है। पानी में गिरी फसलों को तत्काल नहीं निकाला गया तो तैयार फसल भी किसानों के आखों के सामने बर्बाद होने से कोई बचा नहीं सकता।
किसानों ने इस बार खरीफ फसल के मौसम में अरहर, मक्का, उड़द की काफी अच्छी खेती किया था। इसके अलावा तिल व मूंग की फसल भी बोई गई थी। जिले में ज्यादा बारिश होने से तिल, उड़द, मूंग, अरहर, मक्का की फसलों को भारी नुकसान पहले ही हो गया। किसानों में उम्मीद थी कि धान की पैदावार से फायदा होगा लेकिन वह उम्मीद भी टूटने लगी है। किसानों को पानी के अंदर से धान काटने के लिए मजदूर तक नहीं मिल रहे हैं। किसानों ने सरकार के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि अगर कटहल नाले की सफाई कर दी गई होती तो अब तक खेतों से पानी निकल गया होता। क्षेत्र के सूर्यपुरा, शिवपुर, कैथवली, मैरिटार, शिवरामपुर, राजपुर आदि दर्जनों गांवों के किसानों ने सरकार से मुआवजा देने की मांग की है।