हृदय में देश भक्ति की भावना व जोश पैदा करते रंगकर्मी विवेकानंद
सुधीर तिवारी ------------ जागरण संवाददाता, बलिया: बलिया के बागी तेवर को देखना है तो
सुधीर तिवारी
------------ जागरण संवाददाता, बलिया: बलिया के बागी तेवर को देखना है तो बलिया बलिदान दिवस पर रंगकर्मी विवेकानंद की टीम के अंदर देख सकते है। उन्होंने 2009 में जो बीड़ा उठाया वह आज भी कायम है। इनके नेतृत्व में आजादी के दीवानों की दीवानगी का नाट्य रूपांतरण वहां मौजूद हर किसी के हृदय में देश भक्ति की भावना व जोश पैदा करती है। आजादी के दीवानों की वीर गाथा जीवंत रूप से धरातल पर उतारने की पूरी कोशिश उनकी टीम करती हैं।
साथ ही विलुप्त होती हमारी संस्कृति से जुड़े रामलीला, रासलीला, जोगिरा के साथ ही प्राचीन परंपरागत नाटक को जीवंत रखने के लिए हर वक्त प्रयत्नशील रहते हैं। चाहे वह प्रथम शहीद मंगल पांडेय के शहादत दिवस का नुक्कड़ नाटक हो या बलिया बलिदान दिवस की गाथा पर नुक्कड़ नाटक हो उसके लिए उन्हें ही याद किया जाता है। पिता प्रकाशानंद ¨सह से विरासत में मिली इस परंपरा से वह सात-आठ साल से ही जुड़ गए। इसे आगे बढ़ाते हुए आज भी नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लगे हुए हैं। पहली बार पाक युद्ध 1965 के दौरान सेना कोष के सहायतार्थ धन संग्रह करने के लिए वह मंच पर चढ़े। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखे। नरेंद्र शास्त्री द्वारा लिखित तूफान के बाद में बाल सहयोगी कलाकार के रूप में कार्य किए। इसके बाद नाटकों में अभिनय करने लगे।
सन् 1857 ई. में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक अमर शहीद मंगल पांडेय के जीवन पर आधारित नाटक अमर शहीद मंगल पांडेय-1857 या फिर 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बलिया की जन क्रांति पर आधारित नाटक बलिया क्रांति-1942 के प्रदर्शन भी समय-समय पर किए। श्री ¨सह ने बताया कि आजादी के आंदोलन के लिए संघर्ष करने वालों को कितनी कठिनाई का सामान करना पड़ा, नाटक के माध्यम से उसे जनता के बीच रखना हमारा उद्देश्य है। इससे आजादी की लड़ाई में कितनी यातनाएं सहनी पड़ीं लोगों को बताना है। साथ ही अपनी संस्कृति व सभ्यता को बचाने के लिए संघर्ष किया जाता है। आजादी के अतीत की सुनहरी यादों को करते प्रस्तुत
विवेकानंद ¨सह के पीछे रंगकर्मियों की एक फौज है और वे उसका कमांडर है। जिला प्रशासन व शासन से होने वाले लगभग सभी आयोजनों जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, बलिया बलिदान दिवस, गांधी जयंती, सरदार बल्लभ भाई पटेल जयंती, राष्ट्रीय युवा दिवस व राष्ट्रीय मतदान दिवस पर होने वाले आयोजनों ने विवेकानंद ¨सह अतीत की सुनहरी यादों को लोगों के मन मस्तिष्क में जागृत करता है। विवेकानंद के खून में ही रंगकर्म है क्योंकि उनके पिता स्वयं प्रख्यात रंगकर्मी थे। विवेकानंद ¨सह न सिर्फ रंगकर्मी है बल्कि वे इस कला के जनपद में संरक्षक भी हैं। नई पीढ़ी को इस क्षेत्र से जोड़ने का इनका सतत प्रयास रहता है।