गंगाजल को भौतिक संपदा बनाकर किया जा रहा दोहन
जागरण संवाददाता, बलिया : आजाद भारत में गंगाजल के अनुचित प्रबंधन के कारण अब पतित पावनी के पीड़ा की प्र
जागरण संवाददाता, बलिया : आजाद भारत में गंगाजल के अनुचित प्रबंधन के कारण अब पतित पावनी के पीड़ा की प्रमाणिकता सिद्ध होने लगी है। ब्रह्म द्रव गंगा को जहां भौतिक संपदा बनाकर दोहन किया जा रहा है। वहीं गंगा को उत्तराखंड को जागीर बनाकर रख दिया गया। सरकार के लिए गंगा संस्कृति नहीं बल्कि विद्युत ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत बनी हुई हैं। मां गंगा भारतीय संस्कृति को यही बुनियादी त्रासदी है। उक्त बातें गंगा मुक्ति व प्रदूषण विरोधी अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी रमाशंकर तिवारी ने कही। वह शुक्रवार को गंगा दशहरा के पावन अवसर पर बिचला गंगा घाट पर गंगा पंचायत को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। बताया कि जिले के श्रीरामपुर गंगा घाट पर गंगा में सिर्फ चार फीट पानी मध्य धारा में शेष रह गया है जो प्रतिदिन घट रहा है। यह स्थिति उत्तर प्रदेश व बिहार में गंगा तटीय इलाके को रेगिस्तान बनने को मजबूर कर रही है। इससे किसानों का भविष्य भी संकटग्रस्त हो गया है। पश्चिम की संस्कृति के कारण भारत में नदी सभ्यता पर कड़ा प्रहार हुआ है। शहरों की सूरत संवारने में गंगा, यमुना, तमसा जैसी अध्यात्मिक धरोहरों की उपेक्षा की जा रही है। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित मेजर दिनेश ¨सह ने कहा कि गंगा की ज्वलंत समस्या को जनांदोलन बनाया जाए। इस मौके पर अमित ¨सह, पारस नाथ पांडेय, ओमप्रकाश पांडेय, जितेंद्र, रामेश्वर, जयराम, अजय पाल ¨सह यादव, पप्पू पाण्डेय, र¨वद्र, अमित यादव आदि मौजूद थे। अध्यक्षता बुधन पांडेय व संचालन सभासद ददन यादव ने किया