पं. महानंद मिश्र ने सही शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना
नमक सत्याग्रह में शामिल होने के बाद पुलिस की नजर पर चढ़े महानंद मिश्र को 20 दिसम्बर 1931 ई. को बलिया शहर में पड़ी डकैती में पुलिस ने मुल्जिम बना दिया। इस केस में ठाकुर जगन्नाथ ¨सह, चित्तू पाण्डेय सहित 12 लोग पकड़े गए।
जागरण संवाददाता, बलिया : नमक सत्याग्रह में शामिल होने के बाद पुलिस की नजर पर चढ़े पंडित महानंद मिश्र को 20 दिसम्बर 1931 को बलिया शहर में पड़ी डकैती में पुलिस ने मुल्जिम बना दिया। इस केस में ठाकुर जगन्नाथ ¨सह, चित्तू पाण्डेय सहित 12 लोग पकड़े गए। आठ महीने के बाद जमानत होने पर इन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में युवाओं को शामिल करने के लिए क्रांतिवीर सेनानी ने महत स्कूल के छात्रावास में हलवा बेचना शुरु कर दिया था। इसी कमाई से पिता, सौतेली मां वर दो बहनों के परिवार का गुजारा भी होता था। 30 रुपये पूंजी होने पर इन्होंने अपने जापलिनगंज वाले घर में ही होटल खोल दिया। यह होटल बलिया जिले के क्रांतिकारी युवाओं का अड्डा बन गया। चार साल तक चले इस होटल ने सैंकड़ों युवाओं को स्वतंत्रता आन्दोलन के गरम दल में शामिल किया था। जो आगे चलकर कौमी सेना व कांग्रेस के वफादार सेनानी बनें। वर्ष 1938 में जब महानंद जिला कांग्रेस कमेटी के जिला कप्तान बने तब मात्र छह माह में 500 ट्रेंड और 2000 अनट्रेंड स्वयंसेवकों की भर्ती कराई। इसके फलस्वरूप 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में तीन सौ से अधिक लोग जेल चले गए। महानंद का नाम ब्रिटिश सरकार ने नंदगंज ट्रेन डकैती सहित अनेक आपराधिक घटनाओं में डाला था। इनके ऊपर राजद्रोह का मुकदमा डीआईआर के तहत भी कार्रवाई की गई थी। इन्हें सभी मुकदमों को मिलाकर 15 साल की सश्रम कारावास और 30 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। कुल मिलाकर यह स्वतंत्रता आन्दोलन में पांच साल जेल में रहे। ये ऐसे सेनानी रहे हैं, जिनको सबसे अधिक शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी गई थी। 9 अक्तूबर 1972 को इनका निधन हो गया। इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष क्रांति मैदान टाउन हाल के बापू भवन में स्मृति दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।