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सुपोषण से जंग: कृषि क्षेत्र में मजबूती से ही मिलेगी कुपोषण से मुक्ति

कुपोषण यानी भूख के गर्भ से निकला एक बदनुमा दाग जिसे वर्षों से मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। बेशक भूख से लड़ना जटिल व चुनौतीपूर्ण काम है मगर असंभव भी नहीं। विभिन्न सरकारों ने इसे मिटाने के लिए नेकनीयति भी दिखाई है। कभी गरीबी हटाओका नारा दिया गया तो कभी कुपोषण को राष्ट्रीय शर्मघोषित किया गया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Sep 2019 05:00 PM (IST)Updated: Wed, 04 Sep 2019 05:00 PM (IST)
सुपोषण से जंग: कृषि क्षेत्र में मजबूती से ही मिलेगी कुपोषण से मुक्ति
सुपोषण से जंग: कृषि क्षेत्र में मजबूती से ही मिलेगी कुपोषण से मुक्ति

जागरण संवाददाता, बलिया: कुपोषण यानी भूख के गर्भ से निकला एक बदनुमा दाग, जिसे वर्षों से मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। बेशक भूख से लड़ना जटिल व चुनौतीपूर्ण काम है मगर असंभव भी नहीं। विभिन्न सरकारों ने इसे मिटाने के लिए नेकनीयति भी दिखाई है। कभी 'गरीबी हटाओ'का नारा दिया गया तो कभी कुपोषण को 'राष्ट्रीय शर्म'घोषित किया गया। पर अफसोस आजादी सात दशक बाद भी इस समस्या से निजात नहीं मिल पाई। ताज्जुब की बात तो यह है छह दर्जन से अधिक कृषि विश्वविद्यालयों और सैकड़ो शोध संस्थानों पर निगरानी रखने वाला भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी अपने नागरिकों को पौष्टिक भोजन देने का खाका नहीं तैयार कर पाया।

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वजह कि 90 फीसद खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करने वाली भारतीय कृषि खुद संकट के दौर से गुजर रही है। कृषि पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना गरीबी, भूख और कुपोषण से लड़ना इतना आसान नहीं है। यदि वाकई देश को भूख और कुपोषण से निजात दिलाना है तो परंपरागत खेती-किसानी को विकास का मूल बनाना होगा। इसके अलावा खाद्य पदार्थो की बबार्दी पर भी रोक लगाने की जरुरत है। सेवानिवृत डॉ. रमाशंकर ने बताया कि कुपोषण से मुक्ति के लिए अपने तौर तरीकों को भी बदलना होगा। मसलन बचपन से हमें खाना बर्बाद न करने का संस्कार दिया जाता है। बावजूद देश व प्रदेश की कौन कहे गांव-देहात में शादी समारोहों में भोजन की बर्बादी आमबात है। इस पर चाह कर भी रोक नहीं लग पा रही है। वह भी तब, जब कि देश के करोड़ों लोगों को एक जून की रोटी के भी लाले हैं। संपन्नता और विपन्नता की खाई इतनी गहरी हो गई है कि कहीं शादी समारोह में बचने वाले भोजन का निपटारा एक मुसीबत है तो कहीं लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं मिल पा रही।

रिटायर्ड अध्यापक ऋषिदेव वर्मा के अनुसार सामाजिक तानाबाना भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। कहीं मां-बाप बच्चों के पीछे व्यंजन की कटोरी लिए मिन्नतें करते नजर आते हैं तो कहीं बच्चे भूख के मारे दम तोड़ रहे हैं। कहीं अधिक खाने और कम शारीरिक श्रम के कारण लोग गम्भीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं तो कहीं परिवार का भरण-पोषण ही संकट में है। इस स्थिति को दूर किए बिना कुपोषण को कैसे खत्म किया जा सकता है। इसके अलावा गरीब परिवारों की गर्भवती स्त्रियों के पोषण तथा इलाज की उचित देखभाल भी बहुत जरुरी है। सरकार को जरूरतमंद बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों तथा अन्य अभावग्रस्तों की भूख शान्ति का साधन उपलब्ध कराना ही होगा, तभी कुपोषण जैसे जंग से लड़ा जा सकता है।

भूख व कुपोषण जैसी समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन व अन्त्योदय जैसी योजनाओं को और मजबूत करने की दरकार है ताकि शीघ्रातिशीघ्र इस कलंक से मुक्ति पाई जा सके। इसके साथ ही कृषि व कृषि आधारित उद्योगों पर बल, अन्न व अन्य खाद्य पदार्थों का उचित व सुरक्षित भंडारण, उनका समुचित व उचित वितरण, दुरुपयोग पर रोक तथा पौष्टिक भोजन के सम्बन्ध में व्यापक जन जागरुकता पैदा करनी होगी। आमजन की अधिकाधिक भागीदारी व सरकारी योजनाओं का कडाई से पालन ही न सिर्फ भूख बल्कि कुपोषण से भी मुक्ति दिलाएगी।


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