सर्वस्व लील गई लहरें, पिलाते रहे आश्वासन की घुट्टी
पांच साल बाद भी कटानपीड़ितों को नहीं मिल सका आशियाना जबकि शासन-प्रशासन द्वारा आश्वासनों का पु¨लदा हर बार पीड़ितों को थमाया गया। लोग आश्वासनों के सहारे जीते रहे और अपनी ¨जदगी की जैसे-तैसे खानाबदोश की तरह बीताते रहे। कुछ ने सरकारी भवनों को अपना आशियाना बनाया तो कुछ ने बंधा पर झोपड़ी लगाकर शरण लिए तो वहीं कुछ ने अपने रिश्तेदारियों में रहना उचित समझा।
जागरण संवाददाता, दोकटी (बलिया) : पांच साल बाद भी कटान पीड़ितों को आशियाना नहीं मिल सका, जबकि शासन-प्रशासन द्वारा आश्वासनों की घुट्टी हर बार पीड़ितों को पिलाई गई। लोग आश्वासनों के सहारे ¨जदगी को जैसे-तैसे खानाबदोश की तरह बिताते रहे। कुछ ने सरकारी भवनों को अपना आशियाना बनाया तो कुछ ने बंधे पर झोपड़ी लगाकर शरण ली। वहीं कुछ ने अपने रिश्तेदारियों में रहना उचित समझा।
वर्ष 2013 में बाढ़ की विभीषिका में जगदीशपुर, नरदरा, भुसौला के लगभग 200 परिवारों के आशियाने गंगा में विलीन हो गए। उस समय जिले से लेकर तहसील तक के अधिकारी-कर्मचारी, जनप्रतिनिधियों ने लोगों के आंसू पोंछे और आश्वासनों के घूंट पिलाते रहे। कटान पीड़ित हाकिमों का दरवाजा खटखटाते रहे, फिर भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो सका। फलस्वरूप कटान पीड़ितों ने अपने हक की लड़ाई शुरू की और क्रमिक अनशन से लेकर आमरण अनशन तक किया। कटान पीड़ितों को जनप्रतिनिधि व सरकारी अमला ने झूठे आश्वासनों का घूंट पिलाकर आमरण अनशन तो समाप्त करा दिया ¨कतु आज तक कटान पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका। सरकारी भवनों में अस्थाई आशियाना
कटान पीड़ितों की स्थिति विकट होने लगी तो वे ¨सचाई विभाग के डाक बंगला लालगंज, प्राथमिक विद्यालय जगदीशपुर व रैन बसेरा के अलावा बीएसटी बंधा पर शरण लिए हुए हैं। कुछ लोगों ने अपना आशियाना इधर उधर बना लिया ¨कतु आज भी ज्यादातर लोग खानाबदोश की ¨जदगी जी रहे हैं। उक्त डाक बंगला में लगभग नौ परिवार आज भी शरणार्थी बने हुए हैं। वहीं प्राथमिक विद्यालय जगदीशपुर में चार परिवार शरण लिए हुए हैं। चुनाव के समय अधिकारी जाते हैं और अनुनय-विनय करके बूथ के लिए खाली कराते हैं और चुनाव संपन्न कराने के साथ ही कटान पीड़ित पुन: इसे अपना आशियाना बना लेते हैं। पट्टा तो मिला पर कब्जा नहीं
लगभग दो दर्जन कटान पीड़ितों को 24 घंटों के अंदर पट्टा का कागज उपलब्ध करा दिया गया। इस पर कटान पीड़ित भी काफी प्रफुल्लित थे ¨कतु उनकी खुशी अगले दिन ही गायब हो गई, क्योंकि उन्हें पता चला कि पट्टे का कागजात कटान स्थल से 100 मीटर की दूरी पर दिया गया है। कटान पीड़ितों ने पट्टा लेने से इन्कार कर दिया। उसके बाद तीन बार कटान पीड़ितों को पट्टा दिया गया ¨कतु उस पर कब्जा नहीं दिलाया गया।