भूख और भविष्य की चिता, पदयात्रा को मजबूर
कोरोना का कहर से बचने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन किया गया है। इसने कईयों के सामने संकट पैदा कर दिया है। गैर जनपदों व प्रांतों में रह कर मजदूरी करने वाले खासा परेशान है।
जागरण संवाददाता, बैरिया (बलिया): कोरोना के कहर से बचने के लि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन किया गया है। इसने कईयों के सामने बड़ा संकट पैदा कर दिया है। गैर जनपदों व प्रांतों में रह कर मजदूरी करने वाले खासा परेशान है। भय, भूख व भविष्य की अनिश्चितता ने इन प्रवासी मजदूरों की चिता इस कदर बढ़ा दी है कि वे अपने गांव पहुंचने के लिए कोई भी खतरा मोल लेने को तैयार हैं। उन्हें कोरोना से अधिक परिवार के भरण पोषण की चिता सता रही है। 21 दिनों के लॉकडाउन की सूचना से परेशान प्रवासी मजदूरों का जत्था येन-केन प्रकारेण घर पहुंचने की जिद्दोजहद कर रहे हैं।
रविवार को एक ऐसा ही काफिला नजर आया। बिहार के सासाराम से बेतिया के लिए निकला मजदूरों का यह समूह पैदल ही घर को लौट रहा था। इनके हौसले के आगे बाधाएं व भूख प्यास भी बानी नजर आ रही थी। पिछले 24 घंटे में 180 किमी की यात्रा कर चुके इन लोगों के पांव ठहरने का नाम नहीं ले रहे थे। सासाराम से बक्सर व भरौली रास्ते बैरिया पहुंचे लोगों को इस दरम्यान किसी तरह का कोई सहयोग नहीं मिल पाया। न तो कहीं खाना मिला, न पानी। मेडिकल चेकअप तो दूर की बात है।
इन मजदूरों ने बताया कि अभी भी करीब 250 किमी का सफर शेष है। समूह में शामिल विध्याचल साह ने बताया कि शनिवार की सुबह सासाराम से निकले थे, तब से भूखे-प्यासे पैदल चल रहे हैं। रास्ते में कोई सहयोग नहीं मिला। वहीं सुनील बैठा व रमेश बैठा का कहना था कि वहां दिहाड़ी मजदूर का काम करते थे। काम बंद हो गया है। लिहाजा घर वापसी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।
पैदल चलते-चलते बुरी तरह थक चुके जितेंद्र साह का कहना था कि अब तक के सफर में कहीं भी किसी ने पानी तक के लिए नहीं पूछा। भोजन की बात ही करना बेकार है। थकावट से चूर व भूख से तड़पते आलोक ने बताया कि वैसे तो सरकार हम जैसों को घर तक पहुंचाने के लिए व्यवस्था कर रखी है लेकिन उसकी हकीकत आपके सामने है। वहीं डब्लू बैठा व राजकुमार का कहना था कि बिस्कुट व पानी के सहारे रास्ता कट रहा है। इस बीच बैरिया त्रिमुहानी पर मौजूद पुलिस ने पहल कर इन सभी को मांझी घाट पार कराया और जरूरत के मुताबिक आवश्यक दवाएं व खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई।