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अंधविश्वास की वेदी पर कब तक चढ़ती रहेगी जिदगी

यू तो हमने चांद की सफर कर ली है। अपनी अंगुलियों के नीचे पूरी दुनिया को समेट रखा है। चिकित्सा विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है पर समाज का एक बड़ा तबका आज भी अंधविश्वास की डोर से बंधा है। इसका ताजा उदाहरण मझौली गांव में उस समय देखने को मिला जब सर्प दंश के बाद भी परिजन इलाज के बजाय झाड़-फूंक में जुटे रहे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Aug 2019 07:04 PM (IST)Updated: Wed, 28 Aug 2019 10:16 AM (IST)
अंधविश्वास की वेदी पर कब तक चढ़ती रहेगी जिदगी
अंधविश्वास की वेदी पर कब तक चढ़ती रहेगी जिदगी

जागरण संवाददाता, बांसडीहरोड (बलिया) : यू तो हमने चांद की सफर कर ली है। अपनी अंगुलियों के नीचे पूरी दुनिया को समेट रखा है। चिकित्सा विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है पर समाज का एक बड़ा तबका आज भी अंधविश्वास की डोर से बंधा है। इसका ताजा उदाहरण मझौली गांव में उस समय देखने को मिला जब सर्प दंश के बाद भी परिजन इलाज के बजाय झाड़-फूंक में जुटे रहे।

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बीते शुक्रवार की रात छत पर सो रहे दो सगे भाइयों टुनटुन व भुआल को एक विषैले जीव ने काट लिया। काफी जद्दोजहद के बाद दोनों भाई गांव के एक युवक के साथ जिला अस्पताल जाने के बजाय बांसडीहरोड स्थित सती माई स्थान पहुंच गए और झाड़फूंक कराने लगे। अंधविश्वास में जकड़े दोनों भाइयों ने इलाज की जगह झाड़-फूंक को प्राथमिकता दी। नतीजा यह हुआ कि घंटों समय व्यतीत हो गया और दोनों की स्थिति नाजुक होती चली गई। काफी समय गंवाने के बाद स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दोनों को शनिवार की भोर में जिला अस्पताल ले जाया गया, पर अफसोस काफी देर हो चुकी थी लिहाजा परिजनों को अंधविश्वास का खामियाजा भुगतना पड़ा और चिकित्सकों ने छोटे भाई भुआल को मृत घोषित कर दिया। वहीं दूसरे भाई टुनटुन का इलाज शुरू कर दिया गया। बात यही नहीं रुकी। अंधविश्वास की जंजीर में जकड़े लोग मृतक भुआल को गांव लाने के बाद एक बार फिर उसके मृत शरीर के साथ झाड़ फूंक शुरू कर दिया। गांव में कथित तांत्रिकों व ओझा-सोखा का तांता लग गया।

इस दौरान शव का खूब मान-मर्दन हुआ। कोई गले पर दांत गड़ा जिदा करने का दावा करता रहा तो कोई चेहरे व छाती को दबाकर उठ बैठने की गुहार लगाता रहा। यह तमाशा घंटों चला, पर किसी को कोई सफलता नहीं मिली। यही नहीं एक बड़े तांत्रिक ने अ‌र्द्धरात्रि में जिदा करने का दावा किया। पुत्र मोह में परिजन बात मान गए, लेकिन सारी रात की ओझाई के बाद भी नतीजा शून्य रहा। इसके बाद भी कथित तांत्रिकों का पेट नहीं भरा अंतिम संस्कार होने तक बाधा बने रहे। दो दिनों की जलालत के बाद जब युवक के शव से दुर्गंध आने लगी तो रिश्तेदारों व ग्रामीणों ने तांत्रिकों से पिड छुड़ाकर अंतिम संस्कार कराया। घटना को लेकर क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।

घटना ने यह साबित कर दिया कि समाज में अंधविश्वास की जड़े जीवन मूल्यों व चिकित्सा पद्धतियों के काफी गहरी हैं। यह कोई पहली घटना नहीं है ऐसी घटनाएं आए दिन होती हैं बावजूद प्रबुद्ध वर्ग शांत है। ऐसे अंधविश्वास की जड़ खोद कर बाहर फेंकना नितांत आवश्यक है अन्यथा इसकी पुनरावृत्ति होती रहेगी।


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