काश ! रहनुमा देख पाते इस ओर की असहनीय गरीबी
बढ़ते ठंड के चलते आज बतकुच्चन मियां सुबह काफी देर से टहलने के लिए निकले थे। वे अभी घर से कुछ ही दूर गए थे कि पीछे से रामलाल का लड़का दौड़ते हुए आया और पीछे से ही आवाज..अंकल..अंकल, देखिए न पापा की तबियत बिगड़ती ही जा रही है। बतकुच्चन मियां पीछे मुड़ कर देखते हैं तो रामलाल का लड़का राजू जो अभी पांच में पढ़ता है..डबडबाया हुआ है। बतकुच्चन मियां बिना कुछ पूछे ही समझ गए कि रामलाल की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई है। वे तुरंत रामलाल के घर उस बच्चे के साथ चल दिए। वहां पहुंचते ही देखा तो गांव के और भी लोग कई तरह के सुझाव रामलाल की पत्नी साबित्री को दे रहे थे।
बढ़ते ठंड के चलते आज बतकुच्चन मियां सुबह काफी देर से टहलने के लिए निकले थे। वे अभी घर से कुछ ही दूर गए थे कि पीछे से रामलाल का लड़का दौड़ते हुए आया और पीछे से ही अंकल. .अंकल, देखिए न पापा की तबियत बिगड़ती ही जा रही है। बतकुच्चन मियां पीछे मुड़ कर देखते हैं तो रामलाल का लड़का राजू जो अभी पांच में पढ़ता है..डबडबाया हुआ है। वह बिना कुछ पूछे ही समझ गए कि रामलाल की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई है। वे तुरंत रामलाल के घर उस बच्चे के साथ चल दिए। वहां पहुंचते ही देखा तो गांव के और भी लोग कई तरह के सुझाव रामलाल की पत्नी सावित्री को दे रहे थे। कोई उन्हें प्राइवेट अस्पताल के ले जाकर दिखाने की सलाह दे रहा था तो कोई जिला अस्पताल में सरकारी व्यवस्था पर उपचार कराने की बात कह रहा था। तभी बतकुच्चन मियां बोलते हैं अरे भाई..केवल बात ही करते रहेंगे आप सब या इन्हें कहीं ले भी चलेंगे।
इसके बाद कुछ तत्परता बढ़ती है और सभी वाहन बुलाते हैं। रामलाल को अस्पताल ले जाने की तैयारी होने लगती है। तभी खबर सुनकर नागरिक भी वहां हांफते हुए पहुंचते हैं और बतकुच्चन मियां से कहते हैं अरे भाई सरकार ने आयुष्मान योजना के तहत कार्ड दिया होगा तो रामलाल का उपचार भी अच्छी जगह, अच्छे से हो जाएगा। इतना सुनते ही वह कुछ तेवर में आते हुए कहते हैं..रहने दो भईया..वह कार्ड भी असल गरीबों को कहां मिला है। उनकी यह बात नागरिक को अच्छी नहीं लगती है। वे सवाल भरे निगाहों से बतकुच्चन मियां को देखते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं है, मेरे मोहल्ले में तो कई गरीबों को यह कार्ड मिला है। इतना सुनने के बाद भला बतकुच्चन मियां से कहां रहा जाता। वे रामलाल के सच्चे साथी होने के साथ ही पूरे गांव का ख्याल रखने वाले व्यक्ति हैं। पूरा तस्वीर ही नागरिक के सामने रखते हुए बताते हैं कि हमारे मोहल्ले में सतन, नेहा, छोटन सहित ऐसे दर्जनों नाम हैं जिन्हें इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। जबकि ये गांव के सबसे गरीब इंसान हैं। अब नागरिक कहते भी तो क्या कहते। अपनी बातों से पीछे हटते हुए यह कह कर बात को खत्म किए कि यह वर्ष 2011 के आर्थिक जनगणना के आधार पर सूची तैयार की गई है, इसलिए ऐसा हुआ है।
तभी एक ई-रिक्शा आता है, रामलाल के आर्थिक हालात को देखते हुए सभी उन्हें जिला अस्पताल में ही दिखाने पर राजी होते हैं। बतकुच्चन मियां, नागरिक, रामलाल की पत्नी साबित्री, बेटा राजू सभी रामलाल को लेकर जिला अस्पताल पहुंचते हैं। रामलाल बुखार से कांप रहे हैं। जिला अस्पताल के डाक्टर उनका प्राथमिक उपचार करने के बाद कुछ टेस्ट लिखते हैं और साथ ही डेंगू की संभावना व्यक्त करते हुए, अस्पताल की सुविधा का हवाला देते हुए रामलाल को वाराणसी दिखाने की सलाह देते हैं। बाहर जाने की बात सुनते ही साबित्री तो वहीं खुद के हालात से रोने लगती है। वजह कि उसके पास उतने रुपये भी नहीं है। विगत दस दिनों से बुखार के कराण रामलाल मजदूरी पर भी नहीं गए थे। बतकुच्चन मियां के पूछने पर सावित्री ने भीगी पलकों से बताया कि मेरे पास मात्र एक हजार रुपये हैं। उसकी बाते सुन नागरिक के तो पांव तले जमीन ही खिसक जाती है। वे बेवसी से रामलाल और सावित्री को देखते हुए बस इतना ही कहते हैं कि गांव-गिरांव की समस्या जानने नकले रहनुमा..इस ओर की असहनीय गरीबी नहीं देख पाते हैं। यदि सच में देखते तो आज रामलाल का परिवार इतना असहाय नहीं होता। इतने के बाद सभी राय कर आपसी सहयोग से रामलाल को वाराणसी ले जाने के लिए तैयार होते हैं। लेकिन बतकुच्चन मियां को खुद के सवाल का जवाब नहीं मिलता। वह यह कि ऐसे गरीब परिवारों के लिए सरकार के पास कौन से इंतजाम हैं।
नागरिक