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दैवीय आपदा से त्रस्त कृषकों की तरफ शासन का नहीं ध्यान

गंगा व घाघरा के दोआब में बसे द्वाबा के कृषकों की हाल दैवी आपदाओं के कारण दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है। कभी बाढ़ कभी कटान अतिवृष्टि सूखा पाला विभिन्न रोगों का प्रकोप होने से खेत फसलों की क्षति तो होती ही रहती है। इससे बचे तो सबकुछ अग्निकांड को भेंट चढ़ जाते हैं। शासन द्वारा इन फसलों की हुई क्षति का फसल बीमा योजना अंतर्गत क्षतिपूर्ति की व्यवस्था तो की गई है लेकिन धरातल यह योजना उतरती नहीं दिख रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 04:38 PM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 04:38 PM (IST)
दैवीय आपदा से त्रस्त कृषकों की तरफ शासन का नहीं ध्यान
दैवीय आपदा से त्रस्त कृषकों की तरफ शासन का नहीं ध्यान

जागरण संवाददाता, मझौवां (बलिया): गंगा व घाघरा के दोआब में बसे द्वाबा के कृषकों की हाल दैवी आपदाओं के कारण दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है। कभी बाढ़, कभी कटान, अतिवृष्टि, सूखा, पाला, विभिन्न रोगों का प्रकोप होने से खेत, फसलों की क्षति तो होती ही रहती है। इससे बचे तो सबकुछ अग्निकांड को भेंट चढ़ जाते हैं। शासन द्वारा इन फसलों की हुई क्षति का फसल बीमा योजना अंतर्गत क्षतिपूर्ति की व्यवस्था तो की गई है लेकिन धरातल यह योजना उतरती नहीं दिख रही है। इस वर्ष बाढ़ व अतिवृष्टि को ध्यान में रखकर शासन स्तर से फसलों की क्षतिपूर्ति की घोषणा की गई है लेकिन आज तक कोई भी बीमाकृत कंपनी का सर्वे या सरकारी नुमाइंदे राजस्वकर्मी फसलों की क्षति का आकलन करने मौके पर नहीं पहुंच सके।

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क्षेत्र के किसान हल्दी निवासी राणा प्रताप सिंह, परसिया निवासी लक्ष्मण सिंह, ब्रह्मदेव यादव, दीनदयाल सिंह, राजीव सिंह डब्लू, रामेंश्वर पांडेय, बब्लू मिश्र, बेनीमाधव मिश्र, ललन मिश्र आदि का कहना है कि इस वर्ष की बाढ़ व अतिवृष्टि ने किसानों की आर्थिक स्थिति की रीढ़ ही तोड़ दी है। एक तरफ जल जमाव होने से मक्का की फसलें, हरी सब्जी की फसलें, परवल आदि नष्ट हो गए। वहीं पशुओं के चारे का भी अभाव सर्वत्र व्याप्त हो गया है। अब तो किसानों के सामने रबी फसलों की जोताई, बोआई का कार्य भी एक माह तक पिछड़ने की संभावना बलवती हो गई है। अभी तक केसीसी ऋणी किसानों को भी बैंकों द्वारा 2016 से 2019 तक हुई फसलों की क्षति का बीमा की राशि जमा होने के बावजूद क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं हो सका है।


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