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बाढ़ पीड़ितों के घर अंधेरा, महामारी का खतरा

बाढ़ और बारिश की आपदा से अभी भी जनपद के बहुत से इलके नहीं उबर पाए हैं। गंगा या घाघरा नदी नवरात्र तक तबाही मचाने का रिकार्ड इस साल भी कायम कर गई। बांसडीहरोड और बलिया के बीच रेलवे ट्रैक धंसने से ट्रेनों का परिचालन बंद हो गया है तो गंगा नदी के ऊपर बने जनेश्वर मिश्र सेतु का एप्रोच मार्ग कट जाने से जिले के लोगों का आवागमन बिहार से पूरी तरह ठप्प हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 09:19 PM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 09:19 PM (IST)
बाढ़ पीड़ितों के घर अंधेरा, महामारी का खतरा
बाढ़ पीड़ितों के घर अंधेरा, महामारी का खतरा

जागरण संवाददाता, बलिया : बाढ़ और बारिश ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया है। आपदा से अभी भी बहुत से इलाके नहीं उबर पा रहे हैं। गंगा व घाघरा नदी नवरात्र तक तबाही मचाने का रिकार्ड इस साल भी कायम कर गईं। बांसडीह रोड और बलिया के बीच रेलवे ट्रैक धंसने से ट्रेनों का परिचालन बंद हो गया है तो गंगा नदी के ऊपर बने जनेश्वर मिश्र सेतु का एप्रोच मार्ग कट जाने से जिले के लोगों का आवागमन बिहार से पूरी तरह ठप हो गया है।

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पानी कम होने के बाद कई क्षेत्रों में कटान से तबाही अभी भी मची है। यह बात अलग है कि बाढ़ खंड विभाग नदियों के घटाव को देख सुस्त पड़ गया है। बचाव कार्य भी धीमी गति में हो चले हैं। बाढ़ से प्रभावित जिन गांवों से पानी निकल गया है वहां अभी तक विद्युत विभाग आपूर्ति बहाल नहीं कर सका है। इसको लेकर लोगों में भारी आक्रोश है। बाढ़ पीड़ित कहते हैं कि यह कैसा न्याय है कि नवरात्र में सभी लोग मेला घूमेंगे और बाढ़ पीड़ितों के घर अंधेरा छाया रहेगा। जहां से अब बाढ़ का पानी निकल गया है, वहां संक्रामक बीमारियों के फैलने की आशंका बढ़ गई है। शहर में भी जल जमाव वाले स्थानों पर कीचड़ व सड़ांध के कारण लोग संकट में हैं। वहीं गांवों में बने गड्ढों व निचले इलाकों में अभी भी जल जमाव की स्थिति है। फलस्वरूप मच्छरों व अन्य कई तरह के कीटों की प्रकोप बढ़ा हुआ है। इसके बावजूद भी जिला प्रशासन की ओर से सुधि नहीं ली जा रही है। दो हजार बाढ़ पीड़ितों के समक्ष भोजन का संकट

जासं, बैरिया (बलिया): दुबेछपरा रिग बंधे पर अपने परिवार, सामान व पशुओं के साथ आश्रय लिए लगभग दो हजार बाढ़ व कटान पीड़ितों के समक्ष भोजन का संकट है। अनशन व आंदोलन के बाद जिल प्रशासन ने दो टाइम 450-450 पैकेट तथा शनिवार को सिर्फ 400 पैकेट बंधे पर शरण लिए लोगों में भोजन वितरित किया है जबकि यहां दो हजार के लगभग अभी भी बाढ़ पीड़ित बंधे पर शरण लिए हुए हैं। इधर गंगा का पानी कम हो जाने के बाद एनएच पर के पांडेयपुर ढाला पर आश्रय लिए बाढ पीड़ित रास्तों व घरों में से पानी निकल जाने के बाद अपने घरों में लौट गए हैं जबकि उदईछपरा, प्रसाद छपरा, दुबेछपरा में अभी भी बाढ का पानी लगा हुआ है। लोगों के घरों व रास्तों पर तीन से छह फीट की ऊंचाई तक पानी लगा है। विवशता में उक्त गांवों के लगभग 500 परिवार अभी भी दुबेछपरा बंधे पर ठहरे हुए हैं। आरंभिक समय में विधायक सुरेंद्र सिंह ने यहां बाढ़ पीड़ितों के लिए 11 दिनों तक लंगर चलवाया। जिसमें सुबह 10 बजे से देर शाम तक कटान पीड़ित जाकर भोजन करते थे। रात में जिला प्रशासन भोजन का पैकेट भेज देता था तथा आने वाले समाजसेवी भी दोपहर में फूड पैकेट लोगों में वितरित करते थे। लेकिन 28 सितंबर से जिला प्रशासन ने भी खाने का पैकेट देना बंद कर दिया गया। हंगामें के बाद फिर से तहसील प्रशासन 400 पैकेट बनाकर भोजन देना बंद कर दिया। लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा के सामान है।

-पशु पालकों को भूसा देने में विफल

पशु पालन विभाग की संस्तुति के बावजूद बाढ़ पीड़ितों के पशुओं के लिए निर्धारित मात्रा में भूसा नहीं दिया गया। बंधे पर आश्रय लिए पशुपालक दिन ठीक रहने पर सड़क के उत्तर के तरफ खेतों में जाकर घास लाते हैं तो अपने पशुओं को खिलाते हैं जबकि जिला पशुपालन अधिकारी ने पहले दिन ही बताया था कि पशुपालन विभाग की संस्तुति पर जिला प्रशासन पशुओं में प्रति पशु पांच किलो प्रति एक टाइम के हिसाब से भूसा दिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। टोंस नदी व लकड़ा नाले की तबाही से सहमें लोग

जासं, रसड़ा (बलिया) : रसड़ा क्षेत्र के टोंस नदी तथा तथा चिलकहर क्षेत्र के लकड़ा नाले के तटवर्ती गांवों की हालत अभी भी दयनीय बनी हुई। आलम यह है कि जहां धान की फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं, वहीं पानी के सड़ांध से जहां संक्रामक बीमारियों का खतरा खतरा बढ़ा गया है, लेकिन विभाग विभाग की अनेदखी से लोगों में रोष देखा जा रहा है। टोंस नदी से मुख्य रूप से कोड़रा, नगपुरा, अतरसुआं, चिरकिटिहा, कोप, कुरेम, चांदपुर, डुमरिया, अमहरा, कामसीपुर, मुड़ेरा, अकटहीं, बैजलपुर, मटिही आदि गांवों की धान सहित अन्य फसलें डूबकर नष्ट हो चुकी हैं। चिलकहर प्रतिनिधि के अनुसार लकड़ा नाले में भीषण बाढ़ से क्षेत्र के नराक्ष, चितामणिपुर, भदपा, बछईपुर, रघुनाथपुर, उचेड़ा, लोहटा, हजौली, औंदी आदि गांवों में जल जमाव से स्थिति नारकीय बनी हुई है। आलम यह है कि जहां पशुओं के लिए चारा का संकट पैदा हो गया है वहीं पानी के सड़ांध से लोगों में तमाम तरह की संक्रमाम बीमारियां फैलने शुरू हो गई है। विभागीय अधिकारी कोई भी सुधि नहीं ले हैं।


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