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बीमारी से बेजार कटान पीड़ित मजदूर का परिवार

जागरण संवाददाता, मझौवां (बलिया) : अज्ञात बीमारी से लाचार कटान पीड़ित मजदूर को न राशन मिलत

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 09:12 PM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 09:12 PM (IST)
बीमारी से बेजार कटान पीड़ित मजदूर का परिवार
बीमारी से बेजार कटान पीड़ित मजदूर का परिवार

जागरण संवाददाता, मझौवां (बलिया) : अज्ञात बीमारी से लाचार कटान पीड़ित मजदूर को न राशन मिलता है और न केरोसिन। शासन की नजरों से भी लंबे समय से ओझल हो चुका है विकास खंड बेलहरी के ग्राम पंचायत गंगापुर के पूरवा मीनापुर निवासी शिवजी तुरहा (45) व उसका परिवार। संपन्नता की पूछ वाले इस युग में पिछले 20 वर्ष से एनएच 31 सड़क के किनारे बंधे पर अपनी झोपड़ी लगाकर शिवजी का परिवार रहता है। जब तक शरीर ठीक था दैनिक मजदूरी करके छह बच्चों व पत्नी सहित आठ परिवारों का भरण पोषण करते थे। इधर एक साल से वह अज्ञात बीमारी की चपेट में आ गए। उसके बाद से से पूरा परिवार ही सड़क पर आ गया है। इलाज को भी अब रुपये नहीं हैं। पहले जो रूपये कमाए थे सब इलाज में ही खर्च हो गए। बलिया से वाराणसी तक अपना इलाज कराया ¨कतु धन के अभाव में इलाज भी बंद हो गया और बीमारी ने अपना पांव और मजबूती से जमा लिया। अब तो वे पूरी तरह अपाहिज हो चुके हैं। न हाथ ही ठीक से काम करता है और न पैर। अपाहिज की तरह चारपाई पर पड़े रोते-बिलखते इस मजदूर की झोपड़ी तक उनके पांव भी कभी नहीं जाते जो चुनाव के दौरान मंच पर सिर्फ गरीबों की बात करते हैं।

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शादी करने योग्य हो गई हैं दो बेटियां

शिवजी के सिर पर इस हाल में भी एक बड़ी जिम्मेदारी सिर पर है। उनकी दो बेटियां भी शादी करने योग्य हो गई हैं। वहीं घर में भोजन की व्यवस्था करने के लायक भी उनके हालात नहीं हैं। वे खाट पर सोए गुमशुम अपने भाग्य को ही कोसते रहते हैं। उनके चार बच्चे और हैं जो छोटे हैं और इसी उम्र में किसी तरह काम कर परिवार की कुछ मदद करते हैं।

-कभी-कभी प्रधान के कहने पर मिलता है राशन

अपाहिज की ¨जदगी गुजार रहे शिवजी ने जागरण को रोते-बिलखते हुए बताया कि हमको तो कभी सरकारी राशन तक नहीं मिला। न ही राशन कार्ड बना है। मैंने कई बार फार्म भरकर राशन के दुकानदार व ग्राम प्रधान को दिया ¨कतु मेरा फार्म कहां चला जाता है, पता ही नहीं चलता। बगैर राशन कार्ड कोई कोटेदार राशन नहीं देता है। जब जब चुनाव आता है तो प्रधान के कहने पर कभी-कभी कोटेदार राशन देते हैं और फिर बंद कर देते हैं। जब कटान पीड़ितों को जमीन आवंटन हुआ तो उसमें भी मेरा नाम नहीं था। जिससे हम 20 वर्षों से इस बंधे पर सपरिवार जान जोखिम में डालकर किसी तरह गुजर-बसर करते हैं। पहले हम रोज मजदूरी करके परिवार पालते थे ¨कतु आज मेरी दवा को कौन पूछे मेरे बच्चों को रोटी के लाले पड़े हैं। घर मकान जगह जमीन तो दूर की बात है। सरकार की तमाम प्रयासों के बावजूद शासन स्तर से समाज के सबसे पिछले गरीब परिवार के लाभ के लिए कई सरकारी योजनाएं संचालित की गई ¨कतु शिवजी जैसे कई लोग गुमनामी के अंधेरे में पड़े अपने जीवन यापन करने को मजबूर हैं।


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