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कुर्बानी के लिए जगह-जगह सजे बकरे

बकरीद (ईद-उल-अजहा) इस्लामी साल में मनाई जाने वाली दो ईदों में से एक है। इस त्योहार पर नगर में बकरों और सेवई से बाजार पट गए हैं। मुस्लिम समाज के लोग कपड़े सहित त्योहार से जुड़े समानों की खरीदारी करने मे जुटे थे। इस त्योहार में खुदा की राह में कुर्बानी दी जाती है क्योंकि इस्लाम में कुर्बानी का विशेष महत्व है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 07:13 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 10:38 PM (IST)
कुर्बानी के लिए जगह-जगह सजे बकरे

जागरण संवाददाता, बलिया : बकरीद (ईद-उल-अजहा) इस्लामी साल में मनाई जाने वाली दो ईदों में से एक है। इस त्योहार के मद्देनजर नगर में बकरों और सेवई से बाजार पट गए हैं। मुस्लिम समाज के लोग कपड़े सहित त्योहार से जुड़े सामानों की खरीदारी करने में जुट गए हैं। शनिवार को बाजारों में काफी भीड़ देखी गई। इस त्योहार में खुदा की राह में कुर्बानी दी जाती है क्योंकि इस्लाम में कुर्बानी का विशेष महत्व है। बकरीद पर कुर्बानी देना सवाब का काम माना जाता है।

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रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी व भलाई के कामों में खर्च करना है। बकरीद को लेकर प्रचलित कहानी के मुताबिक अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने व कुर्बानी का उदाहरण दुनिया के सामने रखने के लिए जो तरीका अपनाया उसे आज भी परंपरागत रूप से याद किया जाता है। आकाशवाणी हुई कि अल्लाह की रजा के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करो तो हजरत इब्राहिम ने सोचा कि मुझे तो अपनी औलाद ही सबसे प्रिय है। वह अपने बेटे की कुर्बानी को तैयार हो गए। इस पर खुदा ने कहा कि वह परीक्षा ले रहे थे तुम्हारी कुर्बानी मंजूर है परंतु बेटे के बदले में भेड़ या बकरे की कुर्बानी दे दो। तभी से इसी तरह इस त्योहार को मनाया जाता है। यह बलिदान का त्योहार है। इस्लाम में बलिदान का काफी महत्व है।

यह हैं कुर्बानी के मायने

हजरत मोहम्मद साहब का आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या मुल्क का रहने वाला है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह उस देश, समाज, परिवार की हिफाजत के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहे। ईद-उल-फितर की तरह ईद-उल-अजहा में भी गरीबों व मजलूमों का खास ख्याल रखा जाता है। इसी मकसद से बकरीद के सामान यानि कि कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं। एक हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है, बाकी दो हिस्से समाज में जरूरतमंदों में बांटने के लिए होते हैं, जिसे तुरंत बांट दिया जाता है। नियम कहता है कि पहले अपना कर्ज उतारें, तब बकरीद मनाएं।

विशेष पर्व की तैयारी पूरी

मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में इस विशेष पर्व की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। बड़े छोटे सभी ने कुर्बानी के लिए बकरे का इंतजाम किया है। शहर के विशुनीपुर मस्जिद के पास एक सप्ताह से बकरों का बाजार सजने लगा, जहां पांच हजार से लेकर 30 हजार तक के बकरे बिके। शनिवार को बड़े-छोटे दुकानों पर कपड़ों व सेवइयों की खरीदारी के लिए मुस्लिम महिलाएं व पुरुष जुटे रहे। देर रात तक दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ दिखी। मुस्लिम इलाके में लोग अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करने में व्यस्त रहे तो कोई रंगाई पोताई में। शहर सहित देहात में स्थित मस्जिदों की साफ-सफाई का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। शहर में ईदगाह, बहेरी, विशुनीपुर मस्जिद, काजीपुरा, उमरगंज, परमंदापुर, बड़ी मस्जिद गुदरी बाजार सहित अन्य मस्जिदों में लोग नमाज अदा करेंगे।

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