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दिव्यांगता को पीछे छोड़ नारी सशक्तिकरण को दे रही धार

समाज में यदि कोई दिव्यांग हो जाता है तो पूरे समाज के लोग उस पर तरस खाते हैं और उसकी देखरेख करते हैं। घर से लेकर गांव तक के लोग उसकी मदद भी करते हैं। वहीं यदि कोई दिव्यांग अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़ समाज की युवतियों और महिलाओं को विभिन्न माध्यमों से आत्म निर्भर बनाए तो वह पूरे समाज के लिए अलग उदाहरण है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Jan 2019 09:51 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jan 2019 09:51 PM (IST)
दिव्यांगता को पीछे छोड़ नारी सशक्तिकरण को दे रही धार
दिव्यांगता को पीछे छोड़ नारी सशक्तिकरण को दे रही धार

इश्तियाक अहमद

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जागरण संवाददाता, रसड़ा (बलिया) : समाज में यदि कोई दिव्यांग हो जाता है तो पूरे समाज के लोग उस पर तरस खाते हैं और उसकी देखरेख करते हैं। घर से लेकर गांव तक के लोग उसकी मदद भी करते हैं। वहीं यदि कोई दिव्यांग अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़ समाज की युवतियों और महिलाओं को विभिन्न माध्यमों से आत्म निर्भर बनाए तो वह पूरे समाज के लिए अलग उदाहरण है। कुछ ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत कर रही रसड़ा तहसील क्षेत्र के विकास खंड नगरा अंतर्गत ग्राम सभा कोदई मठिया की एक दिव्यांग किशोरी मनीषा कुमारी यादव। वह बाल्यावस्था में पोलियो का शिकार हो गई थी। इसके बावजूद भी खुद के परिश्रम के दम पर अपना जीवन तो संवारा ही, समाज के अन्य युवतियों और महिलाओं को भी वह लगातार आत्मनिर्भर बना रही है। युवतियों को बैग, पर्स, मोबाइल कवर आदि का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार से जोड़, उन्हें स्वावलंबी बनाने की दिशा में विगत चार वर्षों से अनवरत लगी हुई हैं।

लाख विकट परिस्थितियों के बावजूद भी इस पुरूष प्रधान युग में ¨जदगी को सही मायने में कैसे जिएं, इसके लिए नारी सशक्तिकरण के लिए एक मिसाल बनी हुई हैं। मनीषा कुमारी ने बताया कि माता-पिता के कहने पर पहली बार पूर्वांचल ग्रामीण चेतना समिति राघोपुर में दिव्यांग शिविर में प्रतिभाग किया था। वहीं से प्रेरणा लेकर धीरे-धीरे शिविरों में भाग लेना शुरू कर दी। उसके बाद हमारी मेहनत रंग लाई और किशोरियों को आत्म निर्भर बनाने के संकल्प एवं आर्थिक उन्नयन के कार्य में जुट गई। किशोरियों को अपने घर पर ही विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया। अब तक 200 से अधिक किशोरियों एवं महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना चुकी है। उनका मानना है कि इंसान के पास यदि रोजगार की ताकत हो तो वह सभी परिस्थितियों से सहज भाव से निपट सकता है। इसके लिए उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की युवतियों को स्वरोजगार से जोड़ने का अभियान छेड़ रखा है। मनीषा ने बताया कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। यह तथ्य व सत्य महिला सशक्तिकरण पर भी लागू होता है। महिलाओं को अबला की मानसिकता का परित्याग कर सबल एवं समर्थ जीवन जीने का संकल्प लेना होगा। तभी वह खुद के पैरों पर खड़ा हो सकतीं हैं।


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