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जिला अस्पताल का कारनामा, एक युवक के दो ब्लड ग्रुप

जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर आये दिन सवाल खड़ा किया जाता है। कभी डाक्टरों की लापरवाही सामने आती है तो कभी कर्मचारी कर्तव्यहीनता की सारें हदें पार कर जाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 06:29 PM (IST)Updated: Sun, 23 Feb 2020 12:13 AM (IST)
जिला अस्पताल का कारनामा, एक युवक के दो ब्लड ग्रुप
जिला अस्पताल का कारनामा, एक युवक के दो ब्लड ग्रुप

जागरण संवाददाता, बलिया : जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर आए दिन सवाल खड़ा किया जाता है। कभी डाक्टरों की लापरवाही सामने आती है तो कभी कर्मचारी कर्तव्यहीनता की सारी हदें पार कर जाते हैं। स्वास्थ्य महकमा की गैर जिम्मेदाराना हरकतें आम आदमी के लिए परेशानी का सबब बन गया है। हालिया मामला जिला चिकित्सालय स्थित ब्लड बैंक के जुड़ा है। यहां के कर्मचारियों ने एक ही युवक को दो अलग-अलग तिथियों में दो ब्लड ग्रुप होने का प्रमाण पत्र पकड़ा कर जहां युवक को सकते में डाल दिया है वहीं स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त अनियमितता की पोल भी खोल दी है।

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एमएमटीडी कालेज के बीए द्वितीय वर्ष का छात्र प्रवीण कुमार यादव एनएसएस का स्वयंसेवक है। पिछले वर्ष 12 जनवरी को आयोजित शिविर में अपना रक्तदान किया था। उस दौरान छात्र का रक्त समूह बी पॉजीटिव बताया गया था। वहीं इस वर्ष 12 जनवरी को महाविद्यालय में आयोजित रक्तदान शिविर में ब्लड डोनेट करने के बाद उसे ओ पॉजीटिव रक्त समूह का प्रमाण पत्र पकड़ा दिया गया। एक वर्ष बदले अपने रक्त समूह को देखकर छात्र भौचक्का रह गया। हास्पिटल से जारी किये गये प्रमाण पत्र को लेकर हास्पिटल पहुंचे युवक ने ब्लड बैंक में तैनात कर्मचारी से जब इस बाबत सवाल किया तो उसे उल-जूलूल जवाब देकर टरका दिया गया। वहीं उक्त युवक ने बताया कि आखिर एक ही व्यक्ति का दो ब्लड समूह कैसे हो सकता है। इसमें चिकित्सालय के कर्मचारियों की घोर लापरवाही झलकती है।

चिकित्सालय में तैनात कर्मचारियों की लापरवाही का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। बताया कि ब्लड डोनेट करने के बाद भी हास्पिटल से रक्त उपलब्ध नहीं कराया जाता। शनिवार को जिलाधिकारी से मिलकर युवक ने जिम्मेदार कर्मचारी के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई करने की मांग की। कहा कि इन लोगों की बेपरवाही से किसी की जान तक जा सकती है। दागी संभाल रहे जिम्मेदारी

यूं तो जिला चिकित्सालय स्थित ब्लड बैंक हमेशा से सुर्खियों में रहा है। जिदगी और मौत से जूझ रहे लोगों को रक्त उपलब्ध कराने का वाला यह केन्द्र हमेशा से दलालों का अड्डा रहा है। पैसे लेकर खून देना यहां की पुरानी परंपरा रही है। इस कार्य को अंजाम देने के लिए हास्पीटल के कुछ चुनिदा कर्मचारी को यहां की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। ताकि लाल रक्त का काला कारोबार बखूबी संचालित हो सके। वर्तमान में यहां की जिम्मेदारी एक ऐसे शख्स को सौंपी गई है जिस पर ब्लड बेचने तक का आरोप लग चुका है। ऐसे में यहां की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है।


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