टॉप बाक्स-- पर्यावरण व पारिस्थितिकी के लिए घातक है वन्यजीवों का विनाश
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वन्यजीव संरक्षण दिवस -विश्वभर में प्राप्त वन्य जीव-जातियों में 35 प्रतिशत अपने देश में
-वन्यजीवों के विनाश के लिए उत्तरदायी कारणों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि जागरण संवाददाता, बलिया: वर्तमान समय में तीव्रगति से हो रहे वन्यजीवों के विनाश के चलते पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैवविविधता असंतुलित होती जा रही है। इसके चलते मानव पर संकट मंडराने लगा है। भारत की वन्य सम्पदा बेहद समृद्ध रही है और कुछ सदियों पूर्व तक तो विश्व भर में प्राप्त जीव-जातियों में से लगभग 35 प्रतिशत अपने देश की वन्यजीव सम्पदा में शामिल थीं। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा. गणेश कुमार पाठक ने बताया कि अपने देश में वन्य स्तनि की लगभग 350 जातियां, वन्य पक्षी की लगभग 2100 जातियां, सरीसृप एवं उभयचर की लगभग 500 जातियां, सांपों की लगभग 250 जातियां, मछलियों की लगभग 2500 जातियां तथा कीट एवं अर्थोपोडा की लगभग 30,000 जातियां पायी जाती हैं।
वन्यप्राणियों के विनाश के कारण
वन्यप्राणियों का विनाश यद्यपि कि प्राकृतिक रूप से भी होता रहा है, किन्तु प्राकृतिक विनाश असंतुलन पैदा नहीं करता है बल्कि मानवजन्य कारणों से वन्यजीवों का बेतहाशा गति से जो विनाश किया जा रहा है उससे प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न होता जा रहा है, कारण कि वन्यजीवों के विनाश पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैवविविधता भी असंतुलित हो रही है। इससे मानव जगत के लिए भी खतरा उत्पन्न होता जा रहा है। वन्यजीवों के विनाश के लिए उत्तरदायी कारणों में तीव्र जनसंख्या वृध्दि, मानव की बढ़ती धन पिपासा, बढ़ता औद्योगिकीकरण, बढ़ता प्रदूषण, अवैध तरीके से किए जा रहे शिकार एवं सबसे ज्यादा वनों का विनाश उत्तरदायी है। वन्य प्राणियों के संरक्षण की रहीं सभ्यता व संस्कृति
देश में वन्यप्राणियों के संरक्षण की भावना प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में प्रेम-भाव एवं सह अस्तित्व के रूप में विद्यमान रही है और यही कारण है कि अपने यहां हिसक एवं अहिसक सभी प्रकार जीव- जंतुओं को देवी-देवताओं का वाहन बना दिया। ताकि उनको कोई विनष्ट न कर सके और सम्भवत: इसी लिए अन्य देशों की तुलना में भारत में वन्यजीवों का विनाश कम हुआ है। आधुनिक काल में ये मान्यताएं ध्वस्त होती गईं और हम अपने स्वार्थवश वन्यजीवों का अंधा-धुंध विनाश किया जाने लगा, जिसकी परिणीति यह हो रही है कि प्रकृति भी असंतुलन का शिकार होती जा रही है।
प्राकृतिक आपदाएं हमारे विनाश करने को तत्पर है। वन्यप्राणियों के विनाश को देखते हुए ही सन् 1972 में ही भारत सरकार द्वारा Xह्नह्वश्रह्ल;भारतीय वन्य संरक्षण अधिनियम Xह्नह्वश्रह्ल; जारी किया गया किन्तु इस अधिनियम का पूर्णत: अनुपालन न होने के कारण वन्यजीवों के विनाश पर समुचित रोक नहीं लग पा रही है। हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम जहां हैं, वहीं से अपने स्तर से वन्यजीवों का विनाश होने से रोकें एवं अधिक से अधिक जन जागारुकता पैदा करें कि अगर जीव- जंतु नहीं बचेंगें तो हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।