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धीरे-धीरे गुम हो गया दुर्गा पूजा में शौर्य प्रदर्शन

एक समय था कि दशहरा में जहां भी देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होती थी, वहां विशाल गदका शौर्य प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित किया जाता था। गांव के सभी लोग व पूजा समितियां गदका के धुरंधर खिलाड़ियों को सम्मानित करते थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 09:58 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 09:58 PM (IST)
धीरे-धीरे गुम हो गया दुर्गा पूजा में शौर्य प्रदर्शन

लवकुश ¨सह

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जागरण संवाददाता, बलिया : एक समय था कि दशहरा में जहां भी देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होती थी, वहां विशाल गदका शौर्य प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित किया जाता था। गांव के सभी लोग व पूजा समितियां गदका के धुरंधर खिलाड़ियों को सम्मानित करते थे। अब बिगड़े माहौल को लेकर लगभग स्थानों से यह गदका खेल विलुप्त होते दिख रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ स्थानों पर यह आयोजन बखूबी आज भी हो रहा है ¨कतु गांव के बुजुर्ग मानते हैं कि अब गांवों में न वह प्रेम है और न वे धुरंधर खिलाड़ी। अब कुछ खिलाड़ी अपना प्रदर्शन जरूर करते हैं ¨कतु उनमें पारंपरिक गदका की वह झलक नहीं दिखती। तब शाम के समय जब खिलाड़ी तलवार, सैंफ, लाठी, गदा आदि लेकर एक लकड़ी, दो लकड़ी, कैंची खेल आदि का प्रदर्शन करते तो पूरा माहौल डंके की आवाज और दुर्गा माता की जयकारे से गूंज उठता था। इस शौर्य प्रदर्शन के पीछे गांव के लोगों का तर्क है कि शक्ति की देवी के दरबार में गदका के तहत शौर्य का प्रदर्शन करने से देवी खुश होती है।

--यहां डंके के साथ जुटते थे कई गांवों के लोग

जिले के आखिरी छोर पर स्थित सिताबदयारा क्षेत्र में यह परंपरा अभी भी कुछ जीवंत हाल में है। हालांकि तब और अब के स्वरूप में काफी हद तक अंतर आ चुका है, फिर भी अन्य स्थानों की तुलना में यहां के गदका कार्यक्रम का अभी भी कोई जोड़ नहीं है। --इस क्षेत्र के दलजीत टोला निवासी गदका खिलाड़ी शिक्षक त्रिलोकी ¨सह बताते हैं कि एक समय था जब दशहरे में सिताबदियारा क्षेत्र में कई गांवों के लोग अपने-अपने गांव का डंका लेकर एक दूसरे समिति के पास जाते थे। डंके की गड़गड़ाहट पर सभी अपनी कला व शौर्य का प्रदर्शन करते थे। अब अधिकांश जगहों से इस परंपरा का अंत होते दिख रहा है। इसके पीछे जो मूल कारण है वह है गांवों में बढ़ती आपसी विषमता। --इसी क्षेत्र के भवन टोला टोला निवासी शिक्षक शिवपरसन ¨सह ने बताया कि वे दिन अब कहां देखने को मिलने हैं। पहले के खिलाड़ियों को गदका के शौर्य प्रदर्शन का महारथ हासिल होता था। अब की पीढ़ी केवल डीजे पर फिदा देखी जा रही है। याद है मुझे दलजीत टोला और गरीबा टोला में दुर्गा पूजा के दौरान जब शाम को चार बजे से यह आयोजन होता था, तब कई गांवों के लोग शौर्य प्रदर्शन वाले खिलाड़ियों को देखने भारी संख्या में पहुंचते थे। --इसी क्षेत्र के निवासी अशोक ¨सह ने कहा कि अब के समय में यहां दलजीत टोला में नवमी और दशमी को गदका का विशेष आयोजन किया जाता है। वर्तमान पीढ़ी को गदका से मानो कोई मतलब ही नहीं रहा। अब लगभग गांवों से वह मेल भी खत्म हो गया है जो पहले हुआ करता था। --संसार टोला निवासी शिक्षक हरेंद्र यादव बताते हैं डेढ़ दशक पहले तक जिस गांव का गोल अच्छा प्रदर्शन करता था, उस गांव के खिलाड़ियों को अंगवस्त्रम और कई चीजें भेंट की जाती थीं। याद है मुझे जब गदका के खिलाड़ी जब दलजीत टोला में अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने उतरते तो उनकी हैरतअंगेज कला देख लोग चकित हो जाते थे। अब पूरा माहौल बदल गया है।


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