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गुलाबों की नगरी में सिमटी खुशबू

By Edited By: Published: Tue, 31 Jan 2012 04:26 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jan 2012 04:26 PM (IST)
गुलाबों की नगरी में सिमटी खुशबू

सिकंदरपुर (बलिया): यूरोप की औद्योगिक क्रांति ने भारत के जिन प्रमुख कुटीर उद्योगों पर कुठाराघात किया उनमें सिकंदरपुर का प्रसिद्ध तेल-फूल उद्योग भी शामिल है। हजारों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ा यह उद्योग अनेक कारणों से आज अंतिम सासें गिन रहा है। प्रतिस्पर्धा सहित बाजार, संरक्षण, भण्डारण का अभाव तथा शासन की उपेक्षा ने इस उद्योग को इस कदर प्रभावित किया है कि आज फूल और तेल की खुशबू का दायरा करीब-करीब गुलाबों की नगरी सिकन्दरपुर में ही सिमट कर रह गई है। घाटे की खेती हो जाने से फूलों की गश्त करने वाले किसान जहां इससे विमुख हो परम्परागत खेती ओर उन्मुख होते जा रहे हैं। फूलों के बागान कटते जा रहे हैं। वहीं फूलों के बल पर चलने वाले तेल और गुलाब-केवड़ा जल आदि के व्यवसाय से जुड़े लोग या तो बेकारी का दिन काटने को विवश हैं अथवा अन्य कामों में लगते जा रहे हैं। विडम्बना यह कि इस मुद्दे को किसी भी राजनीतिक दल ने अपने चुनावी एजेण्डे में शामिल नहीं किया। इसको लेकर इलाकाई लोग अब राजनेताओं से सवाल-जवाब करने के मूड में आ गए हैं। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि 20-25 वर्ष पूर्व तक तेल-फूल उद्योग में पूरे देश में सिकन्दरपुर की बादशाहत चलती थी। उस दौरान नगर के चहुंओर गुलाब, चमेली, बेला व केवड़ा के बड़े-बड़े बगान हुआ करते थे जिनमें भारी मात्रा में फूल पैदा होते थे। इन बगानों में उगने वाले अलग-अलग फूलों की सुगन्ध से सिकन्दरपुर ही नहीं बल्कि पास-पड़ोस के गांवों तक का वातावरण सुगंधमय बना रहता था। फूलों की खेती से यहां के किसान तथा उनसे चलने वाले उंद्योग से उनमें लगे लोग काफी खुशहाल थे। नगर के एक दर्जन से अधिक स्थानों पर सट्िटयां लगती थी जहां अपने खेतों में पैदा गुलाब, चमेली, केवड़ा के फूल लाकर किसान बेचते थे। उन सट्टीदारों से कारखाना मालिक फूल खरीद कर शुद्ध देशी विधि से तरह-तरह के सामान बनाते थे। चमेली व गुलाब रोगन के तेल जहां वासन विधि से बनते थे वहीं गुलाब व केवड़ा जल और इत्र आसवन विधि से निर्मित होते है। कारखानों में निर्मित इन सामानों को कारखाना मालिक देश के विभिन्न भागों में विक्रय हेतु भेजते थे। तब यहां के उत्पादित इन सामानों की काफी मांग थी तथा भरपूर उत्पादन और अच्छी बिक्री के चलते यहां के नागरिक रोजगार से खुशहाल रहते थे। समय ने पलटा खाया और औद्योगिक क्रांति के बाद स्थापित बड़े-बड़े मशीन से चलने वाले कारखानों में उत्पादित बनावटी सुगंधित तेलों व सेंट जैसे-जैसे बाजारों में पटते गए। उसी अनुपात में यहां के उत्पादित सामानों की बिक्री घटती गयी यह अलग बात है कि सिकंदरपुर के उत्पादित सामानों की गुणवत्ता के मामले फैक्ट्रियों में तेल, सेंट आदि किसी भी दृष्टिकोण से टिक नहीं पाते। हां सिकंदरपुर के उत्पादित सामानों की अपेक्षा फैक्ट्रियों में बने सामानों का मूल्य अवश्य कम है। वैसे कोई कारण नहीं यदि यहां के फूल आधारित उद्योगों को संरक्षण तथा शासनिक सहयोग मिले तो फूल, तेल कारोबार पुन: अपने पुराने फार्म में आकर नागरिकों की खुशहाली का सबब बन सके।

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