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छाया कोहरा, लुढ़का पारा, बर्फीली हवाएं बढ़ा रहीं ठंड

दोपहर बाद खिली धूप फिर आसमान में छा गए बादल न्यूनतम 10.

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 11:12 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 11:12 PM (IST)
छाया कोहरा, लुढ़का पारा, बर्फीली हवाएं बढ़ा रहीं ठंड

जासं, बहराइच : तराई में सुबह से ही कोहरे की चादर तनी रही। दोपहर बाद मौसम साफ हुआ, लेकिन कुछ देर बाद बादल आसमान पर छा गए। बूंदाबांदी भी हुई। धूप निकलने से भी लोगों को राहत नहीं मिली। दिन भर पहाड़ों से आने वाली बर्फीली हवाएं लोगों को कंपाती रहीं। बुधवार को दिन का न्यूनतम तापमान लुढ़क कर 10.8 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। मंगलवार को न्यूनतम तापमान 11 डिग्री सेल्सियस रहा। अधिकतम तापमान 20.8 रहा, जबकि बुधवार को पारा लुढ़क कर 20 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया।

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पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी के चलते गलन और ठिठुरन से जूझ रहे तराईवासियों को दोपहर से साफ हुए मौसम से काफी सुकून मिला। सुबह सड़कों पर कोहरा होने से परिवहन सेवाएं सामान्य रहीं। कोहरा छटने के बाद लोग घरों से बाहर निकले। पार्कों, सड़कों के किनारे भी लोगों ने धूप का आनंद उठाया। बच्चे दोपहर के समय खिली धूप में मैदान में खेलते नजर आए। छुट्टी का दिन होने से बाजार व सड़कों में भीड़ कम रही। दोपहर बाद बादल छा जाने से धूप बेदम हो गई। मौसम वैज्ञानिक डॉ. एमवी सिंह ने बताया कि दिन का अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के करीब दर्ज किया गया, जबकि न्यूनतम तापमान 10.8 डिग्री सेल्सियस रहा। पछुआ हवाएं सात किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रही थीं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि छिटपुट बारिश के आसार हैं। मौसम अभी ऐसे ही बरकरार रहेगा। फसलों के लिए नुकसानदायक है मौसम का मिजाज

पल-पल बदल रहा मौसम का मिजाज फसलों के लिए काफी नुकसानदायक है। मौसम साफ न होने से गेहूं में भी गेरुई रोग लगने की संभावना बढ़ गई है। दलहनी व तिलहनी फसलों में माहू कीट के साथ आलू पर झुलसा रोग का खतरा मंडराने लगा है। मौसम वैज्ञानिक डॉ.एमवी सिंह बताते हैं कि अगर मौसम ऐसे ही रहा तो फसलों के उत्पादन पर असर पड़ेगा। नवाबगंज क्षेत्र में तो हुई बारिश का पानी अभी भी गेहूं के खेतों में भरा हुआ है। किसान फसलों को लेकर परेशान हैं। पारा के आगे इंतजाम हारा

लुढ़क रहे पारे के कारण ठंड व गलन कम नहीं हो रही है। ठंड से बचाव के लिए प्रशासनिक इंतजाम कम पड़ने लगे हैं। शहर में वैसे तो 42 स्थानों पर अलाव जलाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन कोई भी अलाव जलता नहीं मिलेगा। रैन बसेरों का हाल भी बदहाल है।


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