नहीं खोली जुबान, देश पर बलिकरन हो गए बलिदान
1971 में सेना में हुए थे भर्ती कारगिल युद्ध में शहीद होकर छोड़ा अमिट छाप शहीद दिवस पर भी भूले जिम्मेदार
प्रदीप तिवारी/नंद कुमार पांडेय, बहराइच : पाकिस्तान ने जब-जब हिदुस्तान की तरफ आंख उठाई तब-तब वीर सपूतों ने बलिदान देकर उसे पीछे हटने को विवश कर दिया। इन्हीं सपूतों में जिले के एक छोटे से गांव बसंतापुर के रहने वाले बलिदानी वीर सूबेदार बलिकरन सिंह उनमें से एक हैं, जिन्होंने 1971 से लेकर 1999 में हुए कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का परचम लहराया। देश की खातिर वह शहीद हो गए।
जिले के हुजूरपुर ब्लॉक के ग्राम बसंतापुर में जन्में बलिकरन सिंह बचपन से ही बड़े ही साहसी थे। उनके पिता दान बहादुर सिंह भी सेना में थे। 1948 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में पिता ने अपने साहस का परचम लहराया था। पिता से मिली देश सेवा की भावना लेकर वे भी 1971 में राजपूत बटालियन में भर्ती हुए। 1999 में हुए कारगिल युद्ध में पाकिस्तान से अग्रिम मोर्चे पर लड़ते हुए वे शहीद हो गए थे। देश की आन-बान-शान के लिए शहीद होने वाले सूबेदार बलिकरन सिंह का नाम लेकर जिले के लोग आज भी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। -------------- कागजों में सिमटकर रह गया शहीद परिवार से किए वादे - कारगिल युद्ध के दौरान अग्रिम मोर्चे पर देश की खातिर खुद को बलिदान करने वाले सूबेदार बलिकरन की शहादत पर शासन से लेकर प्रशासन ने तमाम वादे किए थे, लेकिन यह वादे सिर्फ कागजों में ही समेट दिए गए। वादे के नाम पर स्कूल, अस्पताल व सड़क बनाने का आश्वासन दिया गया था। इसमें से एक भी वादा 20 साल बाद भी धरातल पर नहीं उतरा है। --------------- वो मना रहे विजय दिवस, परिवार बहा रहा आंसू - भले ही कारगिल युद्ध में मिली जीत पर लोग विजय दिवस मना रहे हों, लेकिन शहीद बलिकरन सिंह के परिवारजन आज भी आंसू बहा रहे हैं। उपेक्षा का ऐसा दंश की परिवार वादे की चिट्ठी लेकर जिलाधिकारी के कार्यालय का चक्कर लगाते थम गया है, लेकिन वादे पूरा करना तो दूर शहीद के परिवार की बात सुनने को भी जिम्मेदार तैयार नहीं हैं।