रामलीला ने जगाई थी स्वतंत्रता संग्राम की अलख
विजय द्विवेदी बहराइच बालार्क ऋषि की तपोभूमि और महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली बहराइच की र
विजय द्विवेदी, बहराइच
बालार्क ऋषि की तपोभूमि और महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली बहराइच की रामलीला का 113 वर्ष पुराना इतिहास है। बहराइच में रामलीला को वर्ष 1905 में संगठित रूप से धार दी गई। भारत को आजाद कराने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वर्ष 1929 में महात्मा गांधी का बहराइच में आगमन हुआ था। इसके बाद छह मई 1930 को घंटाघर पार्क से देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए विभिन्न जनजागरण कार्यक्रमों की रूपरेखा बनी थी। इसमें रामलीला कमेटी को भी स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में एकता स्थापित करने के लिए जोड़ा गया था। इसका उद्देश्य भगवान राम की कथा और लीला से समाज में चेतना, एकता और परतंत्रता से संघर्ष करने की शक्ति विकसित करना था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं.भगवानदीन वैद्य, बलदेव प्रसाद मिश्र व परागदत्त आदि ने इस संघर्ष की कमान संभाली थी।
रामलीला का है अपना इतिहास
बहराइच की रामलीला का अपना इतिहास है। पहले छावनी स्थित संतोष अग्रवाल के मकान के सामने वाले मैदान में बाहर से आने वाली कलाकारों की टीम रामलीला का मंचन करती थी। बाद में वर्ष 1905 में कुछ लोगों ने कमेटी बनाई। सेठ रामेश्वरदास डालमिया, सेठ कन्हैया लाल, पं.भगवानदीन वैद्य, भोलानाथ अग्रवाल, राज्यपाल रहे सरदार जोगेंद्र सिंह, बाबू युगुल बिहारी श्रीवास्तव, केदारनाथ अग्रवाल आदि के सहयोग से 1933 में विधिवत रामलीला कमेटी का गठन किया गया। 1956-57 में इसका रजिस्ट्रेशन कराया गया। रामलीला को राजा बलरामपुर के सहयोग से सरयू नदी के तट पर शुरू किया गया, जहां आज भी मंचन हो रहा है। रामलीला कमेटी को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए भवन, भूमि व धन का भी सहयोग किया गया, जिसके चलते आज भी बहराइच के ऐतिहासिक रामलीला की पहचान बनी हुई है।
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वर्ष 2000 में अध्यक्ष पद संभाला। रामलीला कमेटी अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन करती है। होली पर भी शोभायात्रा निकाली जाती है।
- श्यामकरन टेकड़ीवाल, अध्यक्ष श्री मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामलीला कमेटी, बहराइच