पं. भगवानदीन व सरदार जोगेंद्र ने जलाई क्रांति की 'लौ'
बहराइच : स्वतंत्रता आंदोलन महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इन
बहराइच : स्वतंत्रता आंदोलन महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इनमें पं. भगवानदीन वैद्य, सरदार जोगेंद्र ¨सह व ठाकुर हुकुम ¨सह ने अपना भरपूर योगदान दिया। गांधी जी के आह्वान पर युद्ध विरोधी भाषण देकर अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका गया। दो दिसंबर 1940 को पं. भगवानदीन वैद्य, सरदार जोगेंद्र ¨सह को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इसके बाद आजादी की जली 'लौ' बहराइच में फिर नहीं बुझी।
अक्टूबर 1940 में देशभर में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ व्यक्तिगत सत्याग्रह की योजना तैयार की गई थी। महात्मा गांधी ने बहराइच में सत्याग्रह की जिम्मेदारी पं. भगवानदीन मिश्र वैद्य, सरदार जोगेंद्र ¨सह व ठाकुर हुकुम ¨सह को सौंपी। दो दिसंबर 1940 को वैद्य व सरदार जोगेंद्र ने अंग्रेजी सरकार के युद्ध विरोधी भाषण के साथ सत्याग्रह शुरू कर दिया। यह सत्याग्रह आंदोलन सिर्फ शहरी क्षेत्र तक ही नहीं सीमित रहा,बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक भी फैल गया। इस आंदोलन के जरिए पहली बार बहराइच में आजादी को लेकर युवाओं में ¨चगारी भड़की थी, जो अंग्रेज अधिकारियों के लिए चुनौती साबित हो रही थी। सत्याग्रह को दबाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने पं. वैद्य व सरदार जोगेंद्र को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। इसके विरोध अंग्रेजों के खिलाफ आग और भड़क गई। नानपारा में पं. बसावन लाल, बहराइच में पं. बलदेव प्रसाद मिश्र, रुपईडीहा में अशर्फीलाल, मटेरा में रामगोपाल अग्रवाल,हनुमान प्रसाद ने सत्याग्रह का बिगुल फूंक दिया। सत्याग्रह को कुचलने के लिए पुलिस ने नेतृत्व कर रहे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया जिससे भयभीत अधिकारियों ने कई जगह लाठी-चार्ज किए और जुलूस निकाल रहे क्रांतिकारियों पर भारत रक्षा कानून उल्लंघन का आरोप मढ़ जेल भेज दिया।
महात्मा गांधी के आह्वान पर शुरू हुए सत्याग्रह ने जनांदोलन का रूप ले लिया था। कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों को पहले ही पुलिस ने जेल में डाल दिया था,बावजूद सत्याग्रह अभियान मंद नहीं हुआ। इसके चलते अंग्रेज अधिकारियों ने 762 क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया। इनमें 336 पर भारत रक्षा कानून की धारा 38/5 व अन्य को फर्जी मामले दर्ज किए गए थे। इन क्रांतिकारियों पर 33685 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। जिनमें 16928 रुपये अदा कर दिए गए थे। 1941 को गिरफ्तार क्रांतिकारियों को रिहा कर दिया गया।