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पप्पू किदवई ने बेजुबानों की सेवा में समर्पित किया जीवन, पांच वक्त पढ़ते नमाज...करते गोवंश का इलाज

Bahraich News बहराइच के न‍िवासी पप्पू किदवई ने गोवंंश की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। पप्‍पू पांच वक्त की नमाज के साथ गोवंश की सेवा के ल‍िए हमेशा तैयार रहते हैं। उनकी गोवंश की सेवाभाव की कोई मिसाल नहीं है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 14 Sep 2022 06:05 AM (IST)Updated: Wed, 14 Sep 2022 06:05 AM (IST)
पप्पू किदवई ने बेजुबानों की सेवा में समर्पित किया जीवन, पांच वक्त पढ़ते नमाज...करते गोवंश का इलाज
Bahraich News: भूख से व्याकुल और बीमार गाय की सेवा करते पप्पू किदवई।

बहराइच, [संतोष श्रीवास्तव]। दया और करुणा का भाव मजहबी पहचान से कहीं ऊपर है। यह बात सिद्ध होती है पप्पू किदवई को देखकर, जिन्होंने गोवंंश की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। वह पांच वक्त की नमाज के साथ गोवंश की सेवा में लगे रहते हैं। पप्पू के सेवाभाव की कोई मिसाल नहीं है। वह अन्य लोगों को गोपालन से जुड़े लाभ बताकर जागरूक करते हैं। भूख से व्याकुल गोवंश या फिर बीमार मवेशी। सूचना मिलते ही अपना काम छोड़ कर चल पड़ते हैं गोवंश की तरफ। भूखा होने पर चारे की व्यवस्था करते और जख्मी मिलने पर उपचार।

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पशु सेवक के रूप में म‍िली पहचान 

पशु चिकित्सा से जुड़े परिवार में जन्मे पप्पू अनबोले पशुओं की चिकित्सा करने शहर ही नहीं, दूरदराज इलाकाें तक जाने में संकोच नहीं करते हैं। घायल और जख्मी जानवरों को इलाज मुहैया कराना उनकी जिंदगी का मकसद बन गया है। इसी के चलते वह पशुपालकों व पशु क्रूरता निवारण समिति के सदस्यों के बीच सहयाेगी और लाडले पशु सेवक के रूप में माने जाते हैं।

व‍िरास में म‍िली संवेदना :

स्वतंत्रता सेनानी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रफी अहमद किदवई के खानदान से ताल्लुक रखने के कारण सेवा और जरूरतमंद के प्रति संवेदना पप्पू किदवई को विरासत में मिली है। उनके पिता एएच किदवई पशु चिकित्सा विभाग में कार्यरत होने के साथ ही पशुओं के इलाज के कई अचूक नुस्खे और तरीके जानते थे। अपने पिता से सीखे गुण को पप्पू गोवंश का इलाज कर आगे बढ़ा रहे हैं।

हजारों गोवंश का क‍िया न‍िश्‍शुल्‍क इलाज :

वर्ष 1984 से अब तक वे तकरीबन चार हजार से अधिक गोवंश का इलाज निश्शुल्क कर चुके हैं। वे कहते हैं कि इंसान तो अपनी तकलीफ बयां कर लेता है, लेकिन जानवर के पास तकलीफ बताने के लिए न तो भाषा है और न जुबान। केवल ईश्वर ही अनबोले जानवरों की भाषा को समझता है। गोवंश के इलाज के लिए वह किसी से सहायता भी नहीं लेते हैं।


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