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दवाओं का अकाल, जंक खा रही जर्मनी की मशीन

बहराइच : तराई में बुखार बेकाबू हो चला है। डेंगू, एईएस, मेनिनजाइटिस जैसी मच्छरजनित जानलेव

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 12:05 AM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 12:05 AM (IST)
दवाओं का अकाल, जंक खा रही जर्मनी की मशीन

बहराइच : तराई में बुखार बेकाबू हो चला है। डेंगू, एईएस, मेनिनजाइटिस जैसी मच्छरजनित जानलेवा बीमारियों की चपेट में तेजी से लोग आ रहे हैं। अर्से पूर्व इन मच्छरों के सफाए को लेकर लाखों की लागत से जर्मन से आई उच्च क्षमता की फा¨गग मशीन को चलाने के लिए मैन पॉवर की दरकार है। ब्लॉकों पर खरीदी गई मशीनें व्यवस्था की मार से स्टोर में पड़ी जंक खा चुकी हैं। एंटीलार्वा व मैलाथियान तक की मच्छर अवरोधी दवाओं का भी अकाल है।

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जापानी इंसेफ्लाइटिस डेंगू बुखार के वाहक मच्छरों से निपटने के लिए वर्ष 2012 में जर्मनी से 22 लाख रुपए की लागत से फा¨गग मशीन खरीदी गई थी। जिससे कम समय में दूर तक फा¨गग कर मच्छरों का सफाया किया जा सके। अत्याधुनिक मशीन के संचालन के लिए कर्मियों की भी तैनाती होनी थी, लेकिन अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया। अर्बन क्षेत्र में मच्छरजनित बीमारियों पर अंकुश की जिम्मेदारी उठाने वाले नगर पालिका के पास एक भी मशीन नहीं है। बजट होने के बाद भी मैलाथियान व एंटीलार्वा की खरीद नहीं की गई है। स्वास्थ्य विभाग के पास सीएचसी पर एक-एक फा¨गग मशीन उपलब्ध है। इनमें कई मशीन मरम्मत की बाट जोह रही हैं। कौन करें छिड़काव

बहराइच : मच्छजनित बीमारियों पर अंकुश लगाने के लिए हर साल दवा व उपकरणों की मरम्मत पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन न तो मशीन ठीक हो पा रही न ही मच्छरों का आतंक। वजह मशीन को चलाने के लिए स्वास्थ्य हो या फिर नगर पालिका। पद के सापेक्ष कर्मियों की तैनाती नहीं है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में छिड़काव के लिए प्रधान की जिम्मेदारी होती है, जो अक्सर कदम खींच लेते हैं। डीजल के साथ प्रभावी होती मच्छर मार दवा

बहराइच : डेंगू, जेई व मलेरिया फैला रहे मच्छरों का मारने के लिए मैलाथियान का डीजल के साथ घोल तैयार किया जाता है। केंद्रीय औषधि भंडार के प्रभारी संजय भारद्धज का कहना है कि प्रति एक किलो मैलाथियान दवा को 19 लीटर डीजल में मिलाकर छिड़काव किया जाता है। 1500 किलोग्राम दवा उपलब्ध है। जिले में 17 फा¨गग मशीन उपलब्ध है। जर्मन से आयी मशीन भी क्रियाशील है। खपत को देखते हुए जरूरत पर ही उसका प्रयोग किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में फा¨गग हो रही है।

डॉ. एके पांडेय, सीएमओ, बहराइच


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