20 दिनों में पूरे जिले को ओडीएफ बनाना चुनौती
बहराइच : जिले को खुले में शौचमुक्त किए जाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। शासन से निर्धारि
बहराइच : जिले को खुले में शौचमुक्त किए जाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। शासन से निर्धारित समयसीमा को अब सिर्फ 20 दिन बचे हैं। 313 पंचायतों को ओडीएफ करने की चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए प्रतिदिन 16 पंचायतों को ओडीएफ करना होगा, लेकिन जिम्मेदार विभाग के रवैये को देख ऐसा नहीं लग रहा कि दो अक्टूबर को खुले में शौच मुक्त की कुप्रथा का कलंक मिटेगा और नारी की गरिमा व सम्मान के लिए हर घर में शौचालय का सपना साकार होगा।
जिले में 1386 राजस्व ग्राम हैं। इन गांवों को खुले में शौच मुक्त के लिए वर्ष 2012 के बेस लाइन सर्वे रिपोर्ट के आधार पर एक साल से घर-घर शौचालय निर्माण व उसके प्रयोग का अभियान चल रहा है। स्वच्छ भारत मिशन योजना के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं,करोड़ों का बजट विभाग के खातों में पहुंच चुका है। जिससे तराई को इस कुप्रथा से निजात दिलाया जा सके,लेकिन हकीकत पर नजर डाले तो स्थिति चौंकाने वाली है। डीपीआरओ की रिपोर्ट पर नजर डालें तो 683 ग्रामपंचायतें ओडीएफ घोषित हो चुकी हैं। 390 पंचायतें ओडीएफ की कगार पर हैं। यानी पंचायतों के सिर्फ प्रस्ताव का इंतजार है। ऐसे में 313 पंचायतें ऐसी हैं, जिनकी कार्ययोजना अभी फाइलों में कैद है। इन पंचायतों को ओडीएफ करना आसान नहीं है। यह तभी संभव है, जब हर रोज 16 गांवों में युद्धस्तर पर शौचालय निर्माण कराया जाए। ऐसे में गांधी जयंती पर तराई के खुले में शौच मुक्त होने की उम्मीदें धुंधली नजर आ रही हैं। डीपीआरओ केबी वर्मा कहते हैं कि दो अक्टूबर तक पूरे जिले की ग्रामपंचायतें ओडीएफ हो जाएंगी।
धरातल पर फेल, सिर्फ प्रस्ताव का खेल : पंचायतों को ओडीएफ घोषित करने के लिए शासन की ओर से कई मानक निर्धारित किए गए हैं। इन मानकों को पूरा कराने की जिम्मेदारी डीपीआरओ, बीडीओ व एडीओ पंचायत की है। ग्राम पंचायत की ओर से गांव को खुले में शौच मुक्त होने का प्रस्ताव दिया जाता है। ऐसे में 40 फीसदी मानकों को कागजों में दर्शाया जाता है। धरातल पर मानक पूरा करते शौचालय नहीं दिखेंगे। हालांकि ब्लॉक व जिलास्तरीय टीम सत्यापन कर रिपोर्ट लगाती है। जिसके बाद भारत सरकार की वेबसाइट पर घोषणा प्रपत्र अपलोड किया जाता है।