शहीद पिता की मानिंद दुश्मनों से लोहा ले रहा दुष्यंत
आज से करीब 19 साल पहले जम्मू-कश्मीर के बारामुला में देश के दुश्मन यानि आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए एनएसजी कमांडो ठाकुर यशपाल सिंह शहीद हो गए थे। तब उनका पुत्र दुष्यंत मात्र दस साल का था। अब वह सेना में दुश््मनों के छक्के छुड़ा रहा है।
बागपत, जेएनएन: आज से करीब 19 साल पहले जम्मू-कश्मीर के बारामुला में आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए एनएसजी कमांडो ठाकुर यशपाल सिंह शहीद हो गए थे। तब उनका पुत्र दुष्यंत मात्र दस साल का था। मां सुनीता ने बेटे को पिता के साहसिक किस्से सुनाकर बड़ा किया। उसके बाद बेटे ने पिता के नक्शेकदम पर चलने का प्रण लिया और बीएसएफ में भर्ती हुआ। आज दुष्यंत प्रहरी के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा कर रहा है। शहीद ठाकुर यशपाल सिंह का परिवार बागपत के गांव गौरीपुर मीतली में रहता है। गांव में शहीद की पत्नी सुनीता देवी से पति की शहादत के बारे में पूछने पर वह बताती हैं कि देश की रक्षा करने के लिए प्राणों की आहुति देने से बड़े गौरव की बात क्या हो सकती है। पति की शहादत पर उन्हें गर्व है। वह चाहती थीं कि बेटा पिता की राह पर चले, इसलिए बचपन से ही पुत्र को पिता के साहसिक किस्से सुनाती थीं।
------
आतंकवादियों से हुई मुठभेड़
में शहीद हुए थे यशपाल
सुनीता बताती हैं कि पति की ड्यूटी नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) में थी। 28 नवंबर 2000 को जम्मू-कश्मीर के बारामुला में एक इमारत में आतंकवादियों के घुसने की जानकारी मिली थी। अधिकारियों के आदेश पर आतंकवादियों और (एनएसजी) टीम के साथ उनके पति मौके पर पहुंचे थे। मुठभेड़ के दौरान उनके पति शहीद हो गए थे। बाद में अधिकारियों ने परिवार का हौसला बढ़ाते हुए हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया था। शहीद ठाकुर यशपाल सिंह की याद में गांव में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया। बीएसएफ के जवानों द्वारा शहीद दिवस पर यशपाल सिंह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी जाती है। इसके साथ ही 15 अगस्त व 26 जनवरी को परिवार भी तिरंगा फहराता है।