पाकिस्तान से आने के 57 साल बाद भी वोट नहीं दे पाती नूरजहां
बचपन में पाकिस्तान जाना नू्रजहां को आज तक महंगा पड़ रहा है। नतीजा है कि वह अपनी आंखों के सामने बच्चों को वोट डालते देखती है
जागरण संवाददाता,बागपत: बचपन में पाकिस्तान जाना नू्रजहां को आज तक महंगा पड़ रहा है। वह अपनी आंखों के सामने बच्चों को वोट डालते देखती है, लेकिन खुद नहीं मतदान कर पाती है। वजह, उसे यहां की नागरिकता प्राप्त नहीं है।
बागपत के केतीपुरा मोहल्ले में रहने वाली 64 वर्षीय नूरजहां का जन्म मेरठ के बनी सराय में हुआ था। उनके पिता इमामुद्दीन वर्ष 1959 में पत्नी आशिया और तीन साल की बेटी नूरजहां के साथ पाकिस्तान के कराची चले गए और वहां रहने लगे। उन्हें पाकिस्तान की नागरिकता मिल गई थी। वर्ष 1961 में इमामुद्दीन का इंतकाल हो गया था। आशिया अकेली हुई तो सिवालखास निवासी उसका भाई जाकिर मां-बेटी को 1962 में अपने साथ ले आया था। सिवालखास में उनका पालन पोषण हुआ। उनका निकाह बागपत में हुआ। उनके चार बेटे रहीश, नफीस, अनीस व अतीक हैं। नूरजहां तीसरी पीढ़ी आ गई है। परिवार के सदस्य हर चुनाव में मतदान करते हैं। गुरुवार को लोकसभा के चुनाव में भी ऐसा ही हुआ।
एलटीवी पर बागपत में
रह रही नूरजहां
नूरजहां लॉग टर्म वीजा पर यहां पर रह रही है। नागरिकता न मिलने के कारण उन्हें हर साल एलटीवी की अवधि बढ़वानी पड़ती है। परिवार व अन्य लोगों का कहना है कि नूरजहां को भारत की नागरिकता मिल जानी चाहिए।