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दवा हो या जांच, सब कुछ मिलता सीएचसी के बाहर

सरूरपुर सीएचसी से चली जागरण टीम पड़ताल के अगले पड़ाव में बुधवार दोपहर बड़ौत सीएचसी पहुंची। यहां व्यवस्थाओं का जायजा लिया तो परत-दर-परत अव्यवस्थाओं की कलई खुलती चली गई। जायजे में धरती के भगवान की ऐसी सूरत दिखी, जिसकी कल्पना भी नहीं थी। मरीज उपचार नहीं मिलने से लौट रहे थे, तो कहीं डाक्टर कागज के फटे टुकड़े पर दवाइयां लिख रहे थे। परिसर में पड़े गंदगी के ढेर स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ा रहे थे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Oct 2018 11:51 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 11:51 PM (IST)
दवा हो या जांच, सब कुछ मिलता सीएचसी के बाहर

बड़ौत: सरूरपुर सीएचसी से चली जागरण टीम पड़ताल के अगले पड़ाव में बुधवार दोपहर बड़ौत सीएचसी पहुंची। यहां व्यवस्थाओं का जायजा लिया तो परत-दर-परत अव्यवस्थाओं की कलई खुलती चली गई। जायजे में धरती के भगवान की ऐसी सूरत दिखी, जिसकी कल्पना भी नहीं थी। मरीज उपचार नहीं मिलने से लौट रहे थे, तो कहीं डाक्टर कागज के फटे टुकड़े पर दवाइयां लिख रहे थे। परिसर में पड़े गंदगी के ढेर स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ा रहे थे। सीएचसी परिसर पहुंचे तो शबनम पति और सास के साथ ई-रिक्शा में बैठ रही थी। पूछने पर शबनम ने बताया कि 16 दिन हो गए, ज्यादा खांसी हो गई है लगता है कि टीबी हो गई। आठ दिन से सीएचसी आ रही हूं कि जांच करा सकूं, लेकिन यहां डाक्टर कोई रास्ता नहीं दे रहे हैं। आज बताया है कि बागपत चली जा और बलगम की जांच करा ले। शबनम ने भड़कते हुए कहा कि क्या सरकारी अस्पतालों में ऐसे ही होता है। फटे कागज पर बाहर से दवा

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सीएचसी के अंदर घुसे तो सीएचसी अधीक्षक के कक्ष के बाहर स्टूल पर कमला नाम की महिला बैठी मिली और हाथ में कागज का फटा छोटा सा टुकड़ा था। कह रही थी कि पुत्रवधू को बेटी पैदा हुई है, डाक्टर ने ऐसी दवाई लिख दी जो अस्पताल में नहीं है और बाहर स्टोर पर लगभग ढाई सौ रुपए की बताई है। कमला की बात सुनकर कई कर्मचारी आ गए। इसी बीच सीएचसी अधीक्षक भी अपने कक्ष में पहुंचे तो टीम को देखकर आनन-फानन में कमला को अस्पताल से ही दवाई दिलवाई। सवाल यह है कि सीएचसी अधीक्षक के कहने पर अचानक कहां से दवाई आ गई। अस्पताल में भयंकर दुर्गंध

टीम की निगाह पुरुष टायलेट पर पड़ी तो भयंकर दुर्गंध आ रही थी, शायद ही कोई उसका प्रयोग करने की हिम्मत जुटा पाता होगा। बताया गया कि इससे ज्यादा दयनीय हालत महिला टायलेट की है। सफाईकर्मी तो है, लेकिन टायलेट तक आने में गुरेज करता है। सीएचसी भवन के पीछे खाली जगह में लोहे के दो बड़े डस्टबिन तो रखे थे, लेकिन कूड़ा दूर तक फैला हुआ था। शायद यहां लोगों को अभी भी गंदगी फैलाने की आदत गई नहीं है। सीएचसी के बाहर सरूरपुर गांव का सुभाष नैन मिला तो उसने बताया कि यहां तो हालत खराब है। न दवा है, न उपचार। इन्होंने कहा..

सीएचसी में मरीजों को बेहतर उपचार मिल रहा है। डाक्टरों की कमी अवश्य है, लेकिन आवश्यता पड़ती है तो दूसरे डाक्टरों को बुला लिया जाता है। मरीजों को ऐसी दवा लिखी जाती है तो सीएचसी में ही मिलती है।

एएस मलिक, सीएचसी अधीक्षक, बड़ौत।


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