Move to Jagran APP

महाभारत युग का व्याघ्रप्रस्थ है आज का बागपत

जहीर हसन, बागपत : हर शहर की स्थापना का अपना इतिहास है। बागपत की स्थापना महाभारतकाल स

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 11:12 PM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 11:12 PM (IST)
महाभारत युग का व्याघ्रप्रस्थ है आज का बागपत
महाभारत युग का व्याघ्रप्रस्थ है आज का बागपत

जहीर हसन, बागपत :

loksabha election banner

हर शहर की स्थापना का अपना इतिहास है। बागपत की स्थापना महाभारतकाल से जुड़ी है। यह वही व्याघ्रप्रस्थ है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों से पांडवों के लिए मांगा था। महाभारत में कौरव और पांडवों के बीच खेले गए शह-मात के खेल का ठिकाना भी बागपत में मौजूद है। मामा शकुनि ने भांजे दुर्योधन से मिलकर पांडवों को मारने की चाल चली तो वहीं पांडव भी साजिश नाकाम कर बरनावा से सुरंग से सुरक्षित बागपत पहुंचे। महाभारत ही नहीं बल्कि ¨सधु व हड़प्पा सभ्यता के साक्षी बागपत में शायद कोई ऐसी जगह हो जहां इतिहास और संस्कृति का अनमोल खजाना न छिपा हो।

¨हडन और यमुना दोआब में बसा बागपत साल 1997 में जिला बना, लेकिन इतिहास काफी पुराना है। साल 2007 से अब तक भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा सिनौली गांव में कराए उत्खनन से ¨सधुकालीन मृदभांड, डिश ऑन स्टैंड, कंकाल, तांबे की तलवार, विशाल रथ व कब्र आदि निकलने से साबित हो गया कि बागपत ¨सधुकालीन के अलावा ताम्रनिधि सभ्यता का भी साक्षी रहा। पुरातत्व एक्सपर्ट बरनावा लाक्षागृह के पास उत्खनन से जानकारी जुटा चुके हैं कि बागपत का इतिहास महाभारत कालीन है। पांडवों ने कौरव से जो पांच गांव मांगे थे, उनमें व्याघप्रस्थ यानी कि बागपत शामिल था। पांडवों का बनवास बागपत के काठा गांव में कटा था।

रटौल गांव में 1978-79 व 1990 में खुदाई में गुप्तकालीन सुंदर अंकरणयुक्त स्तंभ, स्थानक विष्णु मूर्ति, गणेशजी, शिव-पार्वती,श्रीफल हस्तामातृका मूर्ति, दुर्गा, शिशु गोद लिए माता देवी मूर्ति और शक्ति माता समेत नौ मूर्ति मिलना बागपत की प्राचीनता साबित करता है। वहीं बालैनी महर्षि वाल्मीक मंदिर द्वापर युग की याद संजोए है। अयोध्या त्यागने के बाद सीता मैया यहीं रहीं। भगवान लव-कुश जन्म स्थली भी यही वाल्मीकि मंदिर है, जहां चांदी के सिक्के व देवी-देवताओं की मूर्तियां मिल चुकी हैं। पुरा में परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में भगवान परशुराम ने शिव¨लग की स्थापना की। यहीं परशुरामखेड़ा में 800 ईसवी पूर्व के भूरे रंग के ठीकरे निकल थे। किशनपुर में राम और लक्ष्मण काल का रामताल आज भी मौजूद है। बड़ागांव में खुदाई में भगवान महावीर की मूर्ति निकल चुकी है।

खनकते हैं पुराने सिक्के

¨सघावली अहीर गांव में करीब दस साल पूर्व खुदाई के दौरान कुषाणकालीन सिक्के निकल चुके हैं। जौनमाना गांव में खुदाई में 12वीं शताब्दी के 28 सिक्के मिल चुके हैं। सिक्कों पर एक ओर भाला लिए घुड़सवार तो वहीं दूसरी तरफ बैठे बैल का चित्र है। किरठल भी में कुछ साल पहले खुदाई में फिरोजकालीन सिक्के मिल चुके हैं।

..और भी हैं सबूत

बामनौली और रंछाड़ के जंगल के टीलों में कुषाण, महाभारत, गुप्तकालीन और मध्य और राजपूत कालीन अवशेष जैसे मृण मूर्तियां, चित्रित मृदभांड़ व मिट्टी के आभूषण और ईंटें मिल चुकी हैं। कुर्डी, काकौर और जागोस तथा खेकड़ा में भी समय-समय पर खुदाई में मृदभांड मिलते रहे। सरकार व हम मिलकर थोड़ा भी प्रयास करें तो जहां अनमोल खजाना बर्बाद होने बचेगा वहीं पर्यटन को बढ़ावा मिलने से बागपत खुशहाल बनेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.