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ये हैं कैप्टन राज ¨सह..इन्होंने देखा आजादी का पहला सूरज

जहीर हसन, बागपत : ये हैं कैप्टन राज ¨सह। इन्होंने गुलामी का दौर भी देखा और आजादी की

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 11:14 PM (IST)Updated: Tue, 14 Aug 2018 11:14 PM (IST)
ये हैं कैप्टन राज ¨सह..इन्होंने देखा आजादी का पहला सूरज

जहीर हसन, बागपत :

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ये हैं कैप्टन राज ¨सह। इन्होंने गुलामी का दौर भी देखा और आजादी की जंग भी लड़ी।..दो बार भारत-पाक युद्ध में दुश्मन सेना को मुंहतोड़ जवाब भी दिया। भावी पीढ़ी को सुबूत देने के लिए लाहौर छावनी से पाक सेना का संदूक उठा लाए। उम्र बेशक 92 साल, लेकिन याददाश्त गजब। बोले कि कुछ मत पूछिए!..जैसी खुशी और उल्लास आजादी की पहली सुबह देखा वैसा जश्न फिर कभी देखने को नहीं मिला।

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बागपत के ढि़कौली गांव में दस मार्च 1926 को जन्मे कैप्टन राज ¨सह बताते हैं कि 1942 में महात्मागांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू पिलाना में आजादी के मतवालों में जोश भरने आए थे। तब उनकी उम्र 16 साल थी और वे भी पांच किमी पैदल चलकर पिलाना पहुंचे थे। गांधी जी ने कहा था कि देखो भाइयों..हम देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। आप भी अंग्रेजों को देश से भगाने में साथ दें। यह सुनकर हजारों हाथों ने भारत माता को आजाद कराने के लिए हर कुर्बानी देने की घोषणा की। वे भी बचपन में अपने गांव ढिकौली में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ आजादी की लड़ाई शामिल हो गए। हमें एक माह पहले ही पता चला गया था कि देश आजाद होने वाला है। हम रोज टकटकी लगाते रहते कि आज देश आजाद होगा। आखिर 15 अगस्त 1947 को आजादी की पहली सुबह आई तो इतनी खुशी थी कि कुछ मत पूछिए..क्या गरीब और क्या अमीर हर तरफ जश्न ही जश्न और लोग झूम उठे। किसी ने मिठाई तो किसी ने गुड़ और किसी ने दूध-छाछ बांटकर जश्न मनाया था। सेना में दी सेवा

-कैप्टन राज ¨सह साल 1948 में बरेली में सेना की जाट रेजिमेंट में सिपाही पद पर भर्ती हुए। साल 1965 तथा 1971 का भारत पाकिस्तान व 1962 में चीन

के साथ हुए युद्ध में बहादुरी से लड़े। साल 1965 की लड़ाई में तो वे लाहौर छावनी से पाक सैनिकों का संदूक उठा लाए जो आज भी उनके पास है। साल 1971 की लड़ाई में बम गिरने से उनका बांया कंधा उड़ गया था।


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