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भट्ठा उद्योग के लिए आसान नहीं फ्लाई ऐश की राह

फ्लाई ऐश की किल्लत भट्टा संचालकों के मुताबिक भट्ठे द्वारा पकाई जाने वाली ईंटो में फ्लाई ऐश की मात्रा केवल 15 प्रतिशत ही होती है जबकि जिग जैग तकनीक से बनाई जाने वाली ईंटो में फ्लाई ऐश की मात्रा

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 09:54 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 09:54 PM (IST)
भट्ठा उद्योग के लिए आसान नहीं फ्लाई ऐश की राह
भट्ठा उद्योग के लिए आसान नहीं फ्लाई ऐश की राह

नवीन चिकारा, बड़ौत (बागपत)

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ईंट भट्ठों को जिग-जैक तकनीक से लैस करने के एनजीटी के आदेश को पूरा करने में भारी-भरकम रकम खर्च करने के बाद भट्ठा उद्योग एक बार फिर मुसीबत में फंसने जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा फ्लाई ऐश से ईंट निर्माण संबधी प्रस्ताव से भट्ठा मालिकों के पसीने छूट गए हैं। अगर यह लागू हो जाता है तो जिले के सैकड़ों ईंट भट्ठा संचालकों एवं इससे जुड़े हजारों मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।

यह है स्थिति

जिले में 500 से ज्यादा ईंट भट्टा संचालित किए जाते हैं। इसमें करीब 10 से 15 हजार मजदूर काम करते हैं। ईट-भट्टा संचालकों का कहना है कि उनका पूरा परिवार वर्षों से यही काम करते आ रहे हैं और अगर सरकार ने उनके भट्टों पर ही रोक लगा दी तो उनके व परिवार के सामने रोजगार का ही संकट खड़ा हो जाएगा, साथ ही इस कारोबार से जुड़े शहर के हजारों मजदूर जिनकी परिवार की रोजी रोटी ही इस धंधे से जुड़ी हुई है। वह भी बेकार हो जाएगे।

मंहगा होगा आशियाना बनाने का सपना

बागपत ईंट निर्माता समिति के जिलाध्यक्ष विक्रम राणा के मुताबिक, सरकार ने अगर उनके धंधे को बंद कर दिया तो मध्यम वर्गीय परिवार के लिए भी घर बनाना मंहगा हो जाएगा। कारण वर्तमान में उनके द्वारा जो लाल ईटों का निर्माण किया जाता है। उसमें लागत कम आने से वह सस्ती पड़ती है लेकिन जिग-जैग तकनीक से बनाई जाने वाली ईटों की लागत अधिक होने के कारण उसकी कीमत भी अधिक होगी। उदाहरण के लिए भट्टे में पकी लाल ईंट वर्तमान में तीन हजार रुपए प्रति हजार मिल रही है। वहीं फ्लाई ऐश से निर्मित ईंट की कीमत करीब पांच हजार रुपए प्रति हजार या इससे अधिक मिलने लगेगी।

बढ़ेगी बेरोजगारी

भट्ठा संचालकों का यह भी कहना है कि पांच हजार मिट्टी की ईटों के निर्माण से लेकर पकाने तक में करीब 15 मजदूर लगते हैं। वहीं नई तकनीक से बनी ईटों में मात्र तीन मजदूर ही इतनी ईंट का निर्माण कर देगें। स्पष्ट है कि जिग-जैग तकनीक के चलते शहर के हजारों श्रमिकों पर बेरोजगारी का संकट खड़ा हो जाएगा।

फ्लाई ऐश की किल्लत

भट्टा संचालकों के मुताबिक, भट्ठे द्वारा पकाई जाने वाली ईंटो में फ्लाई ऐश की मात्रा केवल 15 प्रतिशत ही होती है, जबकि जिग जैग तकनीक से बनाई जाने वाली ईंटो में फ्लाई ऐश की मात्रा 80 प्रतिशत तक होती है। ऐसे में जिग जैग तकनीक से बनी ईंटों के निर्माण करने पर फ्लाई ऐश की पूर्ति करना संभव नहीं होगा।


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