अहिसा और भाईचारा ही जीने का सही रास्ता
आर्य समाज मंदिर गुधनी में आर्य समाज के संस्थापक महान समाज सुधारक महर्षि दयानंद का जन्मदिन मनाया।
बिल्सी : आर्य समाज मंदिर गुधनी में गुरुवार को आर्य समाज के संस्थापक महान समाज सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। विश्व शांति व राष्ट्र रक्षा यज्ञ का आयोजन किया। समाज सुधारक आचार्य संजीव रूप ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष दशमी को 1824 में जन्म लिया था। उन्होंने बाल्यावस्था में ही समझ लिया था कि मंदिर की प्रतिमा ईश्वर नहीं है अपितु सृष्टि को बनाने वाला कोई और ही है। उस ईश्वर की खोज में उन्होंने माता-पिता, घर सब कुछ छोड़ दिया। 20 वर्ष तक भटकने के बाद उन्हें सदगुरु विरजानंद सरस्वती मिले। जिनसे ज्ञान पाकर उन्हें ईश्वर की प्राप्ति हुई।
उन दिनों देश की हालत बहुत खराब थी। सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत, जाति-पाति, मूर्ति पूजा, अवतारवाद, भाषावाद अनेक प्रकार की बुराइयां समाज में फैली थी। जिसका उन्होंने आर्य समाज संगठन बनाकर निरूपण किया। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए बिगुल फूंका और कहा कि स्वदेशी राजा ही देश का कल्याण कर सकता है विदेशी नहीं। महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ लिख कर सब मतों संप्रदायों पर कुठाराघात किया और दुनिया को बताया कि के प्रेम, सत्य, अहिसा, भाईचारा ही जीने का सही रास्ता है और यही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। अगर पाल सिंह ने अपने विचार रखे और महर्षि दयानंद को राष्ट्र का पितामह बताया। प्रज्ञा आर्य ने भजन गाया दयानंद धरती पे गुजरात की, चमका किरण बनके प्रभात की आर्य। इस मौके पर साहब सिंह, सुखबीर सिंह, सोहन पाल सिंह, राकेश आर्य, राजेंद्र सिंह चौहान, संतोष कुमारी, सूरजवती देवी मौजूद रहे।