सोत नदी से अवैध कब्जा हटाना बड़ी चुनौती
सोत नदी से अवैध कब्जा हटवाने के मामले ने एक बार फिर सुर्खियां बटोर ली हैं।
बदायूं : सोत नदी से अवैध कब्जा हटवाने के मामले ने एक बार फिर सुर्खियां बटोर ली हैं। वजह है कि भाजपा सरकार आने के बाद ¨सचाई मंत्री से लेकर जिले के प्रभारी मंत्री तक कब्जा हटवाने को लेकर तमाम घोषणाएं कई बार कर चुके हैं। मगर, प्रशासनिक अमला सोत नदी से अवैध कब्जा हटवाने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। इससे प्रशासनिक अमले की मंशा पर ही सवाल उठने लगे हैं। जिले की ऐतिहासिक सोत नदी का अस्तित्व उस वक्त खतरे में आ गया था जब एक माफिया को सत्ता में जगह मिल गई। माफिया ने रातों-रात फर्जी तरीके से कागजात तैयार कर उसका नक्शा तक बनवा लिया। उस जमीन को किसानों की जमीन दिखाकर उसपर प्ला¨टग शुरू की तो वहां पर इमारतें भी खड़ी कर दी गईं। सोत नदी पर हुए अवैध कब्जे के खिलाफ जो भी आवाज उठती उसको माफिया के सहयोगी सत्ता के दबाव में आकर बंद कर देते। भाजपा सरकार सत्ता में आई तो सोत नदी की जमीन पर बन रहे पूर्व विधायक आबिद रजा के बरातघर को तुड़वाने की बात चलने लगी। सदर विधायक महेश चंद्र गुप्ता ने सोत नदी का अस्तित्व फिर से बहाल करने के लिए पहल शुरू की तो इसकी शिकायतें उन्होंने शासन स्तर तक भेजीं। सदर विधायक की पहल पर ¨सचाई मंत्री धर्मपाल ¨सह और जिले के प्रभारी मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि वह सोत नदी से कब्जा हटवाकर माफियागिरी करने वालों को जेल भिजवाएंगे। ¨सचाई मंत्रालय से भी सोत नदी से कब्जा हटवाने के लिए आदेश-निर्देश जारी होने लगे। तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट राजकुमार द्विवेदी ने साहस करते हुए बरातघर तोड़े जाने के आदेश जारी कर दिए। सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश पर पूर्व विधायक आबिद रजा ने अपना पक्ष रखा तो मामला डीएम के न्यायालय में चलने लगा। बुधवार को डीएम ने सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश को बहाल किया तो सियासी पारा फिर से गर्म हो गया। अब सवाल उठता है कि दो-दो बार बरातघर तोड़े जाने के आदेश होने के बाद भी वहां जाने का साहस कोई क्यों नहीं जुटा पा रहा है। लोगों का भी कहना है कि प्रशासनिक अमला किसी न किसी के दबाव में आकर सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर पा रहा है।
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