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मंच से सहेज रहे संस्कृति के रंग

वह संस्कृति जो हमें आपस में जोड़ती है, बांधती है। वह विषय और प्रसंग जो हमें प्रेरित करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Aug 2018 10:11 AM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 10:11 AM (IST)
मंच से सहेज रहे संस्कृति के रंग
मंच से सहेज रहे संस्कृति के रंग

बदायूं : वह संस्कृति जो हमें आपस में जोड़ती है, बांधती है। वह विषय और प्रसंग जो हमें प्रेरित करते हैं। ऐसी सांस्कृतिक धरोहर और मूल्यों को रंगमंच पर नाट्यों के माध्यम से सहेज रहे हैं नंदकिशोर। थियेटर से निकला यह रंगकर्मी मायानगरी मुंबई तक का सफर करने के बावजूद जिले में इस विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में जुटा है।

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प्रेमचंद के नाटक गोदान से उतरे थे मंच पर

ब्राह्मापुर निवासी नंदकिशोर का अभिनय के प्रति बचपन से लगाव रहा। इसी लगाव के साथ डॉ.सुभाष वशिष्ठ से जुड़े। 1981 में उन्हीं के निर्देशन में गोदान से रंगमंच पर शुरुआत की। इसके बाद पहचान बनती चली गई। विजय तेंदुलकर के मराठी नाटक जाति चे पाहिजे का ¨हदी रूपांतरण जाति ही पूछो साधु की का मंचन किया। महाभोज नाटक मंचन ने काफी सराहना बटोरी।

मंच से देते कुरीतियां खत्म करने का पैगाम

अपने नाटकों से केवल अभिनय और मनोरंजन तक सीमित नहीं रहे। शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को प्रेरित किया तो दहेज, छुआछूत, जात-पात और बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर भी नाटकों से प्रहार किया। कन्या भ्रूण हत्या रोकने, बेटियों को पढ़ाने का पैगाम दिया।

मायानगरी का मिला अनुभव

मंच से शुरू अभिनय यात्रा मायानगरी तक पहुंची। टीवी सीरियल काली में आशुतोष राणा के साथ अभिनय किया। बालिका बधु, न आना इस देश लाडो, उतरन, ये रिश्ता क्या कहलाता है, गुलाल जैसे सीरियल में काम किया।

नई पीढ़ी को जोड़ रहे

शहर में रंगमंच का प्रेक्षागृह न होने के बावजूद युवा नाट्यकर्मियों की टीम खड़ी की। नई पीढ़ी को संस्कृति की इस विधा से रूबरू कराने में सक्रिय हैं। कई नाटकों को प्रायोजक तक मिलना मुश्किल होता है।


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