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दलदली जमीन पर टिक नहीं सके पिलर, तीन हिस्सों में बंटा पुल

कोलाघाट का पुल सिर्फ आवागमन की सहूलियत का साधन भर नहीं बल्कि कटरी के विकास का माध्यम बना। उम्मीदों का यह पुल शुरू होने के साथ ही कटरी से अपराध कम हुए। दस्युओं से मुक्ति दिलाने में पुलिस को मदद मिली। तमाम बदलाव आए लेकिन जिसको 50 साल के लिए तैयार किया गया था वह पुल 12 साल में ही धराशायी हो गया। कारण क्या था जांच दलमें ही पता चल सकेगा।

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 12:51 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 12:51 AM (IST)
दलदली जमीन पर टिक नहीं सके पिलर, तीन हिस्सों में बंटा पुल
दलदली जमीन पर टिक नहीं सके पिलर, तीन हिस्सों में बंटा पुल

जेएनएन, जलालाबाद/शाहजहांपुर : कोलाघाट का पुल सिर्फ आवागमन की सहूलियत का साधन भर नहीं बल्कि कटरी के विकास का माध्यम बना। उम्मीदों का यह पुल शुरू होने के साथ ही कटरी से अपराध कम हुए। दस्युओं से मुक्ति दिलाने में पुलिस को मदद मिली। तमाम बदलाव आए, लेकिन जिसको 50 साल के लिए तैयार किया गया था वह पुल 12 साल में ही धराशायी हो गया। कारण क्या था जांच दलमें ही पता चल सकेगा।

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इस पुल को बनवाने के लिए लंबा संघर्ष हुआ। प्रख्यात संत बाबा त्यागी जी महाराज टापर वाले बाबा की अगुवाई में आंदोलन हुआ। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की। 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस पुल को बनवाने का वादा किया था, लेकिन निर्माण नहीं हो सका। सरकार बदल गई। 2003 में सपा सरकार बनी तो इस पुल को स्वीकृति दी गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 2005-06 में इसका शिलान्यास किया। 2007 में बसपा की सरकार बनी, लेकिन पुल का काम नहीं रुका। 2009 में पुल बनकर तैयार हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने लोकार्पण किया था। इस पुल को लगभग 50 वर्ष तक आवागमन के लिए सुरक्षित माना गया, लेकिन, सोमवार सुबह पुल का करीब 200 मीटर का हिस्सा धंस गया।

60 पिलर पर टिका पुल

1800 मीटर लंबे पुल के निर्माण के लिए 60 पिलर बनाए गए थे। जलालाबाद की ओर से जो सात नंबर पिलर ढहा है वह करीब साढ़े 15 मीटर ऊंचा था। पिलर निर्माण के लिए 22 मीटर की गहराई से काम किया गया था। माना जा रहा है कि नदी के किनारे होने के कारण यहां जमीन ज्यादा दलदली व रेतीली हो गई होगी। जिस कारण पिलर धीरे धीरे जमीन के अंदर धंसता गया। सोमवार को जमीन ज्यादा खोखली हो गई, इस कारण पिलर नीचे चला गया। हालांकि इस तरह के किसी भी निर्माण से पहले मिट्टी की जांच से लेकर कई तकनीकी पहलू देखे जाते हैं। इस तरह पिलर धंसने की आशंका एक फीसद ही रहती है। जिले में यह पहली बार हुआ है।

गर्डर व स्लैब रखे

पुल निर्माण के दौरान पिलर के ऊपर गर्डर पर स्लैब रखे जाते हैं। इनके साथ वेयरिग व स्प्रिंग का प्रयोग होता है, जिससे वाहन गुजरने पर पुल पर दबाव नहीं आता है। सोमवार को हुए हादसे के बाद पुल तीन हिस्सों में बंट गया।


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