तुम्हारे प्रति है श्रद्धा, शिकवा भी तुम्हीं से
(आजमगढ़) अपनी कला का हुनर दिखाने के लिए घर छोड़कर पश्चिम बंगाल के आने वाले मूर्तिकारों को भगवान से ही शिकायत है। कहते हैं कि हम भगवान की प्रतिमा बनाते हैं और वे हमारा ही खर्च बमुश्किल से चला रहे हैं।
जागरण संवाददाता, रानी की सराय (आजमगढ़) : अपनी कला का हुनर दिखाने के लिए घर छोड़कर आने वाले पश्चिम बंगाल के मूर्तिकारों को भगवान से ही शिकायत है। कहते हैं कि हम भगवान की प्रतिमा बनाते हैं और वे हमारा ही खर्च बमुश्किल से चला रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार कस्बा के कई भागों में रहकर दो माह तक प्रतिमा निर्माण करते हैं। एक कलाकार के साथ एक दर्जन सहयोगी भी आते हैं। प्रतिमा निर्माण पर अब पहले से ज्यादा खर्च बढ़ गया है। छोटी प्रतिमा दो हजार खर्च में तैयार होती थी जिस पर अब तीन से चार हजार खर्च आ रहा है। बिक्री चार हजार तक हो पा रही है। बांस आसानी से मिल नहीं रहा है तो रस्सी के साथ ही पुआल और कलर पर भी महंगाई का असर है। प्रतिमा निर्माण के लिए आने के बाद यहीं से पैसा उधार लिया जाता है। सभी प्रतिमाएं बिकने के बाद हिसाब करने पर सब बराबर हो जाता है। आने वाले सहयोगियों की भी मजदूरी बढ़ गई है। ऐसे में खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया है। मूर्तिकारों का कहना है कि हम भगवान की प्रतिमा को बनाते हैं लेकिन वही हमारी नहीं सुन रहे। पहले तो दो माह पूर्व आते थे, अब तो छह माह से यहीं पर हम लोग रहते हैं।मंहगाई और सामान की अनुपलब्धता से काफी दिक्कतें आ रही हैं। मूर्तिकारों की परेशानी, उन्हीं की जुबानी
घर-बार छोड़कर आते हैं और जाते समय पूरे समय के बराबर भी पैसा नहीं निकल पाता। पहले से काफी अंतर हो गया है।
-धामू, मूर्तिकार। पूर्व में प्रतिमा में लगने वाली सामग्री आसानी से मिल जाती थी, जिसकी कीमत कम होती थी। अब सब महंगे हो गए हैं।
-जयंत, मूर्तिकार। महंगाई के चलते मजदूरी निकलना मुश्किल है। ऐसे में छह माह काम कराने के बाद सहयोगियों को पैसे देने के लिए दिक्कत होती है।
-संजू, मूर्तिकार। प्रतिमा बनाने पर खर्च अधिक आ रहा है। कीमत उतनी नहीं मिल पा रही है। सब खर्च देखने के बाद परेशानी आ रही है।
-सामू, मूर्तिकार।