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कुशलक्षेम को दिनभर रहे आतुर, कोरें गीली कर गई शाम

आजमगढ़ : सावन के महीने में कहीं रिमझिम बरसात, कहीं चटख धूप तो कहीं उड़ रही थी धूल

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:13 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 12:13 AM (IST)
कुशलक्षेम को दिनभर रहे आतुर, कोरें गीली कर गई शाम
कुशलक्षेम को दिनभर रहे आतुर, कोरें गीली कर गई शाम

आजमगढ़ : सावन के महीने में कहीं रिमझिम बरसात, कहीं चटख धूप तो कहीं उड़ रही थी धूल। एक ही शहर पर इतर-इतर मौसम फिर भी एक उदासी। यह उदासी अलसुबह से ही राजनीतिक गलियारे ही नहीं आम जनजीवन को भी अपनी चपेट में लिए हुए थी। 15 अगस्त के उमंगों का अभी दौर थमा नहीं था कि गुरुवार की सुबह से टेलीविजन व रेडियो पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्वास्थ्य को लेकर शुभ संकेत नहीं मिल रहे थे। स्थिति नाजुक बताई जाने लगी। अटकलों का दौर विराट रूप लेते जा रहा था। कोई मीडिया से इसकी जानकारी लेने में जुटा था तो कोई इंटरनेट की दुनिया में अपने चहेतों से स्थिति टटोल रहा था। वैसे भी अटल जी किसी राजनीतिक पैमाने में नहीं आते थे, अलबत्ता भाजपा से जुड़ा व्यक्ति हो या अन्य सभी उनके स्वास्थ्य को लेकर लंबे समय से प्रार्थना कर रहे थे पर अनहोनी को कौन टाल सकता है। शाम पांच बजकर पांच मिनट पर यह बुलेटिन जारी हुई कि अब अटल जी नहीं रहे। इसके बाद भी लोग एक-दूसरे से फोन पर इस बात की पुष्टि करते दिखे कि क्या वाकई अटल जी अब नहीं रहे।

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इधर मृत्यु की सूचना होते ही पूरा जनपद मानों स्तब्ध हो गया। बरबस, सबके मुंह से एक शब्द निकल रहे थे कि अटल सरीखा जननायक विरले ही पैदा होते हैं। आमजन से लगायत विशेष वर्ग अपनी स्मृतियों में उन्हें टटोल रहा था। कोई उनकी उपलब्धि बखान कर रहा था कि कोई मानवीय संवेदना को पिरो रहा था। ¨हदू ही नहीं सभी वर्ग के लोग अटल जी मृत्यु से आहत नजर आए। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि राजनीति का एक युग समाप्त हो गया। स्कूल कालेज लगायत पार्टी कार्यालयों में शोक सभा का आयोजन शुरू हो गया तो वहीं विपक्ष के नेता भी उनकी मृत्यु पर संवेदना व्यक्त करने में पीछे नहीं रहे। अटल जी बतौर प्रधानमंत्री ही नहीं एक अच्छे इंसान व कवि के रूप में युगों युगों तक याद किए जाते रहेंगे। यह कविता सदैव गुनगुनाई जाएगी-- बाधाएं आती हैं आएं

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते,

आग लगाकर जलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

हास्य-रूदन में, तूफानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा..


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